पानी छिडकने लगे । उन्होंने उससे इस प्रकार मूरित हो जानेका कारण पूछा । उसने उत्तरमे घुमा पिराकर चाँददे सौन्दर्य दर्शन और उसके प्रति अपनी आसक्तिकी यात बतायी । पिर राय महरये भयसे वह गोवर नगर छोडकर चला गया । (६६७०) ७-याजिर एक मास तक इधर उधर घूमता रहा, पिर वह एक नगरम पहुँचा । (हमारे पास उपलब्ध सामग्रीमे इस नगरका नाम नहीं है पर बीकानेर प्रतिमे कदाचित् उसका नाम राजापुर बताया गया है।) एक दिन रातको जत्र याजिर चाँदवे विरहवे गीत गा रहा था, तर राजा रूपचन्दने उसे मुना और उसे . बुल्याया । (७१-७२) ८-याजिरने आफ्र राजा रूपचन्दसे कहा-'उज्जैन मेरा स्थान है, जहाँका राजा विक्राजित वडा धर्मनिष्ठ है। मै चारो भुवन घूमता हुआ गोवरपे सुन्दर नगरमें पहुँचा। यहाँ मैंने चाँद नामक एक स्त्री देसी, जो मेरे मनम पत्थरकी लकीर बनकर समा गयी है। उसकी टीस मेरे मन में दिन-दिन सवाई होती जा रही है।' यह मुनकर रूपचन्द मनम नाँदवे सम्बन्ध विस्तारके साथ जाननेकी जिज्ञासा जागी और उसने याजिरका सम्मान कर उससे चाँदका हाल विस्तारके साथ पहनेका अनुरोध किया। तर याजिरने चाँदकी माँग, पेश, ललाट, भौंह, नेन, नासिका, ओष्ठ, दाँत, जिला, वान, तिल, मोरा, भुजा, कुच, पेट, पीट, जानु, पग और गति, आकार, यस्त्र और आभूषण, सबका विस्तारवे साय वर्णन किया । (७३ ९५) ९-चॉदधे रूप-वर्णनको सुनकर रूपचन्दने बाँठाको सेना तैयार करनेका आदेश दिया और सेनाने कूच किया । (कविने यहाँ रूपचन्दको सेनाये हाथी, घोडों आदिका वर्णन क्यिा है।) मार्गम अपशकुन हुए, पर उसने उसकी तनिक भी परवाह न की और गोवर नगरको जाकर घेर लिया । (९६-१०२) १०-रूपचन्दकी सेनाके आनेसे गोवर नगरमे आतक पैल गया। तब महर सहदेवने राजा रूपचन्दके पास दूत भेजा कि ये पता लगाये कि उसने विस कारण घेरा डाला और उसका आदेश क्या है। दूत जाकर रूपचन्दवे पास उपस्थित हुए। राजाने दूतोंकी बात सुनकर कहा कि चाँदका मेरे साथ तत्काल विराह पर दो । दूतोंने रूपचन्दको समझानेकी चेष्टा की, पर वह न माना और दूतोपर युद्ध हुआ और चले जानेको कहा ! दूताने रौटकर रूपचन्दकी माँग कह सुनायी । तर महर सहदेवने अपने साथियोंसे परामर्श किया। कुछ लोगोंने तो यहा कि चाँदको दे दीजिए | कुछको चाँदनी माँगकी बात सुनर प्रोध आ गया। अन्ततोगत्वा स्पचन्दमे लोहा लेनेका निश्चय हुआ और युद्धकी तैयारी होने लगी। (यहाँ पनिने महरये अस्स, अश्वारोही, धनुर्धर, रथ, हाथी आदिका वर्णन किया है)1 (१०३ ११६) ११--दृमरे दिन रूपचन्द दुगंकी ओर यदा और महर भी युद्धषे लिए बाहर निकलकर आया। युद्ध आरम्भ हुआ। महरपे प्रमुस योद्धा मारे गये। यह देगकर भाटने महरसे कहा कि आपके पास ऐसे चोर नही हैं जो रूपनन्ददे मनिकोको परास कर सकें । आप तत्काल रोरक्को खुला भेजिये । (११७ १२०)
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