भैरोंसिंह-हाँ, हम जानते हैं।
कमला-फिर, अब क्या करना चाहिए?
भैरोसिंह-तुम वहाँ चली चलो जहाँ हम लोगों के संगी-साथी हैं, उसी जगह मिल-जुल कर सलाह करेंगे।
भैरोंसिंह कमला को लिए अपनी माँ चपला के पास पहुंचे और पुकार कर कहा, "माँ, यह कमला है, इसका नाम तो तुमने सुना ही होगा।"
"हाँ-हाँ, मैं इसे बखूबी जानती हूँ।" यह कह चपला ने उठ कर कमला को गले लगा लिया और कहा, "बेटी तू अच्छी तरह तो है? मैं तेरी बड़ाई बहुत दिनों से सुन रही हूँ, भैरोंसिंह ने तेरी बड़ी तारीफ की थी, मेरे पास बैठ और कह किशोरी कैसी है?"
कमला-(बैठ कर) किशोरी का हाल क्या पूछती हैं? वह बेचारी तो माधवी की जेल में पड़ी है, ललिता कुँअर इन्द्रजीतसिंह के नाम का धोखा देकर उसे ले आई।
भैरोंसिंह-(चौंक कर) क्या यहाँ तक नौबत पहुँच गई?
कमला-जी हाँ, मैं वहाँ मौजूद न थी, नहीं तो ऐसा न होने पाता!
भैरोंसिंह-खुलासा हाल कहो, क्या हुआ?
कमला ने सब हाल हाल किशोरी के धोखा खाने और ललिता के पकड़ लेने का सुना कर कहा, "यह बखेड़ा (भैरोंसिंह की तरफ इशारा करके) इन्हीं का मचाया हुआ है, न ये इन्द्रजीतसिंह बन कर शिवदत्तगढ़ जाते न बेचारी किशोरी की यह दशा होती।"
चपला-हाँ, मैं सुन सकी हुँ। इसी कसूर पर बेचारी को शिवदत्त ने अपने यहाँ से निकाल दिया। खैर, तूने यह बड़ा काम किया कि ललिता को पकड़ लिया, अब हम लोग अपना काम सिद्ध कर लेंगे।
कमला-आप लोगों ने क्या किया और अब यहाँ क्या करने का इरादा है?
चपला ने भी अपना और इन्द्रजीतसिंह का सब हाल कह सुनाया। थोड़ी देर तक बातचीत होती रही। सुबह की सफेदी निकलना ही चाहती थी कि ये लोग वहाँ से उठ खड़े हुए और एक पहाड़ी की तरफ चले गए।
9
कुँअर इन्द्रजीतसिंह अब जबर्दस्ती करने को उतारू हुए और इस ताक में लगे कि माधवी सुरंग का ताला खोल दीवान से मिलने के लिए महल में जाय तो मैं अपना रंग दिखाऊँ। तिलोत्तमा के होशियार कर देने से माधवी भी चेत गई थी और दीवान साहब के पास आना-जाना उसने बिल्कुल बन्द कर दिया था, मगर जब पानी वाली सुरंग बन्द की गई तब से तिलोत्तमा इसी दूसरी सुरंग की राह आने-जाने लगी और इस सुरंग की ताली जो माधवी के पास रहती थी अपने पास रखने लगी। पानी वाली सुरंग के बन्द होते ही इन्द्रजीतसिंह जान गये कि अब इन औरतों की आमद-रफ्त इसी सुरंग