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हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिख कर कह आये हैं कि राजा वीरेन्द्रसिंह अर आनन्दसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि उन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और वेशक ऐसा ही है भी। राजा वीरेन्द्रसिंह ने यकायक माधवी के गयाजी पर धावा कर दिया जिसका लेना इस समय उन्होंने बहुत ही सहज समझ रक्खा था, क्योंकि माधवी के चाल-चलन की खबर उन्हें बखूबी लग गयी थी। वे जानते थे कि राज-काज पर ध्यान न दे दिन-रात ऐश में डूबे रहने वाले राजा का राज्य कितना कमजोर हो जाता है। रैयत को ऐसे राजा से कितनी नफरत हो जाती है और किसी दूसरे नेक धर्मात्मा के आ पहुँचने के लिए वे लोग कितनी मिन्नतें मानते रहते हैं।
वीरेन्द्रसिंह का खयाल बहुत ही ठीक था। गया दखल करने में उनको जरा भी तकलीफ नहीं हुई, किसी ने उनका मुकाबला न किया। एक तो उनका चढ़ा-बढ़ा प्रताप ही ऐसा था कि कोई मुकाबला करने का साहस भी नहीं कर सकता था, दूसरे बेदिल रियाया और फौज तो चाहती ही थी कि वीरेन्द्रसिंह के ऐसा कोई यहाँ का भी राजा हो। चाहे दिन-रात ऐश में डूबे और शराब के नशे में चूर रहने वाले मालिकों को कुछ भी खबर न हो, पर बड़े-बड़े जमींदारों और राजकर्मचारियों को माधवी और कुँअर इन्द्रजीत के बीच खिचाखिची की खबर लग चुकी थी और उन्हें मालूम हो चुका था कि आजकल वीरेन्द्रसिंह के ऐयार लोग राजगृह में विराज रहे हैं।
राजा वीरेन्द्रसिंह ने बेरोक-टोक शहर में पहुँच कर अपना दखल जमा लिया और अपने नाम की मुनादी करवा दी। वहाँ के दो-एक राजकर्मचारी, जो दीवान अग्निदत्त के दोस्त और खैरख्वाह थे, रंग कुरंग देख कर भाग गये; बाकी फौजी अफसरों और रैयतों ने उनकी अमलदारी खुशी से कबूल कर ली, जिसका हाल राजा वीरेन्द्रसिंह को इसी से मालूम हो गया कि उन लोगों ने दरबार में बेखौफ और हँसते हुए पहुँच कर मुबारकबाद के साथ नजरें गुजारी।
विजयादशमी के एक दिन पहले गया का राज्य राजा वीरेन्द्रसिंह के कब्जे में आ गया और विजयादशमी को अर्थात् दूसरे दिन प्रातःकाल उनके लड़के आनन्दसिंह को यहाँ की गद्दी पर बैठे हुए लोगों ने देखा तथा नजरें दीं। अपने छोटे लड़के कुँअर आनन्दसिंह को गया की गद्दी दे दूसरे ही दिन राजा वीरेन्द्रसिंह चुनार लौट जाने वाले थे, मगर उनके रवाना होने के पहले ही ऐयार लोग जख्मी और बेहोश कुँअर इन्द्रजीतसिंह को लिए हुए गयाजी पहुँच गये जिन्हें देख राजा वीरेन्द्रसिंह को अपना इरादा छोड़ देना पड़ा और बहुत दिन से बिछुड़े हुए प्यारे लड़के को आज इस अवस्था में पाकर उन्हें अपने तन-बदन की सुध भुला देनी पड़ी।
राजा वीरेन्द्रसिंह के मौजूद होने पर भी गयाजी का बड़ा भारी राजभवन सूना हो रहा था क्योंकि उसमें रहने वाले माधवी और दीवान अग्निदत्त के रिश्तेदार लोग