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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१२५

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हौसले पर पूरा भरोसा है। (देवीसिंह की तरफ देखकर) खैर, तो आज दिन भी अच्छा है।

देवीसिंह––बहुत खूब! (एक मुसाहिब की तरफ देखकर) आप जरा तकलीफ करें।

मुसाहिब––बहुत अच्छा, मैं जाता हूँ।

कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह यही चाहते थे कि किसी तरह वीरेन्द्रसिंह चुनार जायें क्योंकि उनके रहते ये दोनों अपने मतलब की कार्रवाई नहीं कर सकते थे। इस बात को वीरेन्द्रसिंह भी समझते थे मगर इसके सिवाय भी न मालूम क्या सोच कर वे इस समय चुनार जा रहे हैं या गयाजी की सरहद छोड़कर क्या मतलब निकाला चाहते हैं!

राजा वीरेन्द्रसिंह का विचार कोई जान नहीं सकता था। वे किसी से यह नहीं कह सकते ये कि हम दो घण्टे के बाद क्या करेंगे। कोई यह नहीं कह सकता था कि महाराज आज तो यहाँ हैं मगर कल कहाँ रहेंगे, या महाराज फलां काम को क्यों और किस इरादे से कर रहे हैं। पहले दिल-ही-दिल में अपना इरादा मजबूत कर लेते थे, जिसे कोई बदल नहीं सकता था, मगर अपने बाप की बहुत इज्जत करते थे और उनके मुकाबले में अपने दृढ़ विचार को भी हुक्म के मुताबिक बदल देने में बुरा नहीं समझते थे, बल्कि उसे कर्तव्य और धर्म मानते थे।

दो घड़ी रात जाते-जाते वीरेन्द्रसिंह ने चुनार की तरफ कूच कर दिया और देवीसिंह को साथ लेते गए। अब कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह खुदमुख्तार हो गये, मगर साथ ही इसके राजा हो गए तो क्या, अपनी खुदमुख्तारी के सामने आनन्दसिंह अपने बड़े भाई के हुक्म की नाकदरी नहीं कर सकते थे। और यहाँ दोनों ही के इरादे दूसरे हैं, जिसमें एक-दूसरे का बाधक नहीं हो सकता था।

कुँअर इन्द्रजीतसिंह बीमार थे, इसलिए दोनों भाई एक ही कमरे में रहा करते थे, मगर अब दोनों ने अपने-अपने लिए अलग-अलग दो कमरे मुकर्रर किए। जिस कमरे में विचित्र कोठरी थी, और जिसका हाल ऊपर लिखा गया है, उसे आनन्दसिंह ने अपने लिए रखा। उससे कुछ दूर पर इन्द्रजीतसिंह का दूसरा कमरा था।

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रात आधी से ज्यादा जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार 'जागते रहियो, होशियार रहियो' कह-कह कर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अँधेरी है, चारों तरफ अँधेरा छाया हुआ है। यहाँ का मुख्य स्थान विष्णु-पादुका है, उसके चारों तरफ की आबादी बहुत घनी है, मगर इस समय हम गुंजान आबादी में न जाकर उस मुख्तसिर आबादी की तरफ चलते हैं, जो शहर के उत्तर रामशिला पहाड़ी के नीचे आबाद है और