पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१४२

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भीमसेन ने ऐयारों को वहाँ का हाल मालूम करने के लिए मुस्तैद किया। दो ही दिन की कोशिश में ऐयारों ने वहाँ का कुल हाल मालूम कर लिया और भीमसेन ने जब यह सुना कि माधवी वहाँ मौजूद नहीं है, तब बिना छेड़छाड़ मचाये गयाजी की तरफ कूच किया।

इस समय राजगृह को अपने कब्जे में कर लेना भीमसेन के लिए कोई बड़ी बात न थी, मगर इस खयाल से कि गयाजी में राजा वीरेन्द्रसिंह की अमलदारी हो गयी है, राजगृह दखल करने से कोई फायदा न होगा और वीरेन्द्रसिंह के मुकाबले में लड़कर भी जीतना बहुत ही मुश्किल है उसने राजगृह का खयाल छोड़ दिया। सिवाय इसके जाहिर होकर वह किसी तरह किशोरी को अपने कब्जे में कर भी नहीं सकता था, उसे लुक-छिपकर पहले किशोरी पर ही सफाई का हाथ दिखाना मंजूर था।

गयाजी के पास पहुँचते ही एक गुप्त और भयानक पहाड़ी में उन लोगों ने डेरा डाला और खबर लेने के लिए ऐयारों को रवाना किया। जिस तरह भीमसेन के ऐयार लोग घूम-घूमकर टोह लिया करते थे उसी तरह माधवी की सखी तिलोत्तमा भी अपना काम साधने के लिए भेष बदलकर चारों तरफ घूमा करती थी। इत्तिफाक से भीमसेन के ऐयारों की मुलाकात तिलोत्तमा से हो गयी और बहुत जल्द माधवी की खबर भीमसेन को तथा भीमसेन की खबर माधवी को लग गयी।

भीमसेन के साथ जितने लड़ाके थे उन सभी को खोह में ही छोड़ सिर्फ भीमसेन और नाहरसिंह को माधवी ने उस मकान में बुला लिया जिसका हाल हम ऊपर लिख चुके हैं।

आज किशोरी के घर में घुसकर आफत मचाने वाले ये ही भीमसेन और नाहरसिंह हैं। अपने ऐयारों की मदद से उस मकान के बगल वाले खंडहर में घुसकर भीमसेन ने उस मकान में सेंध लगाई और उस सेंध की राह नाहरसिंह ने अन्दर जाकर जो कुछ किया, वह पाठकों को मालूम ही है।

नाहरसिंह मकान के अन्दर घुसकर उसी सेंध की राह किशोरी को लेकर बाहर निकल आया और उस बेचारी को जमीन पर गिराकर मालिक के हुक्म के मुताबिक उसे मार डालने पर मुस्तैद हुआ। मगर एक बेकसूर औरत पर इस तरह जुल्म करने का इरादा करते ही उस जवाँमर्द का कलेजा दहल गया। वह किशोरी को जमीन पर रख दूर जा खड़ा हुआ और भीमसेन से, जो मुँह पर नकाब डाले उसी जगह मौजूद था, बोला, "लीजिए, इसके आगे अब जो कुछ करना है आप ही कीजिये। मेरी हिम्मत नहीं पड़ती! मगर मैं आपको भी···!"

हाथ में खंजर लेकर भीमसेन फौरन बेचारी किशोरी की छाती पर, जो उस समय डर के मारे बेहोश थी, जा चढ़ा। साथ ही इसके किशोरी की बेहोशी भी जाती रही और उसने अपने को मौत के पंजे में फँसा हुआ पाया, जैसा कि हम ऊपर लिख आये हैं।

भीमसेन ने खंजर उठाकर ज्यों ही किशोरी को मारना चाहा, पीछे से किसी ने उसकी कलाई थाम ली और खंजर लिए उसके मजबूत हाथ को बेबस कर दिया। भीम-