पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१४३

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सेन ने फिरकर देखा तो एक साधु की सूरत नजर पड़ी। वह किशोरी को छोड़ उठ खड़ा हुआ और उसी खंजर से उसने साधु पर वार किया।

यह साधु वही है जो रामशिला पहाड़ी के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले पर रहता था और जिसके पास मदद के लिए माधवी और तिलोत्तमा का जाना और उन्हीं के पास देवीसिंह का पहुँचना भी हम लिख आये हैं। इस समय यह साधु इस बात पर मुस्तैद दिखाई देता है कि जिस तरह बने, इन दुष्टों के हाथ से बेचारी किशोरी को बचावे।

चाँदनी रात में दूर खड़ा नाहरसिंह यह तमाशा देखता रहा मगर भीमसेन को साधु से जबर्दस्त समझकर मदद के लिए पास न आया। भीमसेन के चलाए हुए खंजर ने साधु का कुछ भी नुकसान न किया और उसके खंजर का वार बचाकर फुर्ती से भीमसेन के पीछे जा उसकी टाँग पकड़ कर इस ढंग खींची कि भीमसेन किसी तरह सँभल न सका और धम्म से जमीन पर गिर पड़ा। उसके गिरते ही वह साधु हट गया, और बोला, "उठ खड़ा हो और फिर आकर लड़!"

गुस्से में भरा हुआ भीमसेन उठ खड़ा हुआ और खंजर जमीन पर फेंक साधु से लिपट गया क्योंकि वह कुश्ती के फन में अपने को बहुत होशियार समझता था। मगर साधु से कुछ पेश न गयी। थोड़ी ही देर में साधु ने भीमसेन को सुस्त कर दिया और "जा तुझे मैं छोड़ देता हूँ। अगर अपनी जिन्दगी चाहता है तो अभी यहां से भाग जा।"

भीमसेन हैरान होकर साधु का मुँह देखता रह गया, कुछ जवाब न दे सका। जमीन-पर पड़ी हुई बेचारी किशोरी यह कैफियत देख रही थी, मगर डर के मारे न तो उससे उठा जाता था और न वह चिल्ला ही सकती थी।

भीमसेन को इस तरह बेदम देखकर नाहरसिंह से न रहा गया। वह झपट कर साधु के पास आया और ललकार कर बोला, "अगर बहादुरी का दावा रखता है तो इधर आ। मैं समझ गया कि तू साधु नहीं, बल्कि कोई मक्कार है।"

साधु महाशय नाहरसिंह से भी उलझने को तैयार हो गये मगर ऐसी नौबत न आयी क्योंकि उसी समय ढूँढ़ते हुए सेंध की राह से कुँअर इन्द्रजीतसिंह और तारासिंह भी खंडहर में आ पहुँचे और उनके पीछे-पीछे किन्नरी और कमला भी आ मौजूद हुई। कुँअर इन्द्रजीतसिंह को देखते ही वे साधूराम तो हट गये और खंडहर की दीवार फाँद न मालूम कहाँ चले गये। उधर एक पेड़ के पास खड़े हुए अपने नेजे को नाहरसिंह ने उखाड़ लिया और उसी से इन्द्रजीतसिंह का मुकाबला किया। तारासिंह ने उछलकर एक लात भीमसेन को ऐसी लगाई कि वह किसी तरह सम्हल न सका, तुरंत जमीन पर लोट गया। भीमसेन एक लात खाकर जमीन पर लोट जाने वाला न था मगर साधु के साथ लड़कर वह बदहवास और सुस्त हो रहा था इसलिए तारासिंह की लात से सम्हल न सका। तारासिंह ने भीमसेन की मुश्के बाँध ली और उसे एक किनारे रख के नाहरसिंह की लड़ाई का तमाशा देखने लगा।

आधे घंटे तक नाहरसिंह और इन्द्रजीतसिंह के बीच लड़ाई होती रही। इन्द्र-