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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१४८

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के बीच में वह उसकी छाती पर सवार हो खंजर उसके कलेजे के पार किया ही चाहता था।

साफ सवेरा हो चुका था बल्कि पूरब तरफ सूर्य की लालिमा ने चौथाई आसमान पर अपना दखल जमा लिया था। वह साधु इधर-उधर घूमता-फिरता एक जगह अटक गया और सोचने लगा कि किधर जाय या क्या करे, इतने ही में सामने से इसी की एक दूसरे बाबाजी आते हुए दिखाई पड़े। देखते ही यह उनकी तरफ बढ़ा और बोला, "मैं बड़ी देर से आपको ढूँढ़ता रहा हूँ, क्योंकि इसी जगह मिलने का वादा किया था!"

अभी आए हुए बाबाजी ने कहा, "मैं भी वादा पूरा करने के लिए आ पहुँचा (हँस कर) बहुत खासे! यदि इस समय कोई देखे तो अवश्य बावला हो जाय और कहे कि एक ही रंग और सूरत-शक्ल के दो बाबाजी कहाँ से पैदा हो गये? अच्छा, हमारे पीछे-पीछे चले आओ।"

दोनों बाबाओं ने एक तरफ का रास्ता लिया और देखते-देखते न मालूम किधर गायब हो गये या किस खोह में जा छिपे।

किशोरी की जब आँख खुली तो उसने अपने को एक सुन्दर मसहरी पर लेटे हुए पाया और उम्दा कपड़ों और जेवरों से सजी हुई कई औरतें भी उसे दिखाई पड़ीं। पहले तो किशोरी ने यही समझा कि वे सब अच्छे अमीरों और सरदारों की लड़कियाँ हैं, मगर थोड़ी ही देर बाद उनकी बातचीत और कायदे से मालूम हो गया कि लौंडियाँ हैं। अपनी बेवसी और बदकिस्मती पर रोती हुई भी किशोरी को यह जानने की बड़ी उत्कण्ठा हुई कि किस महाराजाधिराज के मकान में आ फँसी हूँ जिसकी लौंडियाँ इस शान और शौकत की दिखाई पड़ती हैं।

किशोरी को होश में आते देख उनमें की दो-तीन लौंडियाँ न मालूम कहाँ चली गई, मगर किशोरी ने बखूबी समझ लिया कि मेरे होश में आने की किसी को खबर करने गई हैं।

ताज्जुब-भरी निगाहों से किशोरी चारों तरफ देखने लगी। वाह-वाह, क्या सुन्दर कमरा बना हुआ है! चारों तरफ दीवारों पर मीनाकारी का काम किया हुआ है छत में सुनहरी बेल और बीच-बीच में जड़ाऊ फूलों को देखकर अक्ल दंग होती है। न मालूम इसकी तैयारी में कितने रुपये खर्च हो गये होंगे! छत से लटकती हुई बिल्लौरी हाँडियों की परइयों में मानिक की लोलकें लटक रही हैं, जड़ाऊ डारों पर बेशकीमत दीवारगीरें अपनी बहार दिखा रही हैं, दरवाजों की महराबों पर अँगूर की बेलें और उस पर बैठी हुई छोटी-छोटी खूबसुरत चिड़ियों के बनाने में कारीगर ने जो कुछ मेहनत की होगी, उसका जानना बहुत ही मुश्किल है। उन अँगूरों में कहीं पक्के अँगूर की जगह मानिक और कच्चे की जगह पन्ना काम में लाया गया था। अलावा इन सब बातों के उस कमरे की कुल सजावट का हाल अगर लिखा जाय तो हमारा असल मतलब बिल्कुल छूट जायेगा और मुख्तसिर लिखावट के वादे में फर्क पड़ जायगा। अस्तु, इस बारे में हम कुछ नहीं लिखते।