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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१५८

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पुजारी-राम-राम! यह जंगल बड़ा ही भयानक है। कई दफे तो हम लोग इसमें भूल गये हैं और दो-दो दिन तक भटकते ही रह गए हैं, आप बेचारे तो नये ठहरे, आइये, बैठिये, कुछ जलपान कीजिए।

भैरोंसिंह-अजी, कहाँ का खाना कैसा पीना! होश तो ठिकाने ही नहीं हैं, बस भंग पीकर खूब सोवेंगे। घूमते-घूमते ऐसे थके कि तमाम बदन चूर-चूर हो गया। कृपानिधान, आज भी हम लोगों की इत्तिला कुमार से न कीजिएगा, हम लोग मिलाने लायक नहीं हैं, इस समय तो खूब गहरी छनेगी!

पुजारी-खैर, ऐसा ही सही! (हँस कर) आइये, बैठिए तो।

दोनों ऐयारों ने भंग पी और बाकी लोगों को भी पिलाई। इसके बाद कुछ देर आराम करके बाजार में घूमने-फिरने के लिए गये और अच्छी तरह देख-भाल कर लौट आये। सोते समय फिर उन्हीं महात्मा का जिक्र पुजारी से करने लगे जिनसे मिलाने का वायदा कर चुके थे और यहाँ तक उनकी तारीफ की कि पुजारीजी उनसे मिलने के लिए जल्दी करने लगे और बोले, "यह तो कहिए, कल आप उनके दर्शन करावेंगे या नहीं?"

बद्रीनाथ-जरूर, बस कुमार यहां से सन्ध्या-पूजा करके लौट जायें तो चले चलिए, मगर अकेले आप ही चलिए, नहीं तो महात्मा बड़ा बिगड़ेंगे कि इतने आदमियों को क्यों ले आए। वह जल्दी किसी से मिलने-मिलाने वाले नहीं हैं।

पुजारी-हमें क्या गरज पड़ी है, जो किसी को साथ ले जायँ, अकेले आपके साथ चलेंगे।

भैरोंसिंह-बस, तभी तो ठीक होगा।

दूसरे दिन जव महाराजकुमार सन्ध्या-पूजा करके लौट गए, तो बद्रीनाथ और भैरोंसिंह पुजारी को साथ ले वहाँ से रवाना हुए और पहाड़ के नीचे उतरने के बाद बोले, "बस, अब यहीं बूटी छान लें, इसीलिए लुटिया लेता आया हूँ।"

पुजारी-क्या हर्ज है, बूटी छान लीजिए।

बद्रीनाथ-आपके हिस्से की भी बनाऊँ न?

पुजारी-इस दोपहर के समय क्या बूटी पिलाइयेगा। हमें तो अपनी आदत न थी, आप ही लोगों के सबब दो दिन से खूब पीने में आती है।

बद्रीनाथ-क्या हर्ज है, थोड़ी-सी पी लीजिएगा।

पुजारी-जैसी आपकी मर्जी।

हमारे बहादुर ऐयारों ने एक पत्थर की चट्टान पर भंग घोंट कर पी और नजर बचा थोड़ी-सी बेहोशी की दवा मिला पुजारी को भी पिलाई। थोड़ी ही देर में पुजारी जी महाराज तो चीं बोल गए और गहरी बेहोशी में मस्त हो गए। दोनों ऐयार उसे उठाकर ले गए और एक झाड़ी में छिपा आये।

बद्रीनाथ-अब क्या करना चाहिए?

भैरोंसिंह-आप यहाँ रहिए, मैं उसी तरकीब से कुमार को उठा लाता हूँ।

बद्रीनाथ-अच्छी बात है, मैं अपने हाथ से पुजारी की सूरत तुम्हें बनाता हूँ।