भैरोंसिंह-बनाइए।
पुजारी की सूरत बना बद्रीनाथ को उसी जगह छोड़ भैरोंसिंह लौटे। सन्ध्या होने के पहले ही मन्दिर में जा पहुँचे। लोगों ने पूछा, "कहिए पुजारीजी, महात्मा से मुलाकात हुई या नहीं? और अकेले क्यों लौटे, चौबेजी कहाँ रह गये?"
नकली पुजारी ने कहा-महात्मा से मुलाकात हुई। वाह क्या बात है, महात्मा क्या वह तो पूरे सिद्ध हैं! दोनों चौबों को बहत मानते हैं। उन्हें तो आने न दिया मगर मैं चला आया। अब चौबेजी कल आवेंगे।"
समय पर महाराजकुमार भी आ पहुँचे और सन्ध्या करने के लिए मन्दिर के अन्दर घुसे। मामूली तौर पर पुजारी के बदले में नकली पुजारी अर्थात् भैरोसिंह मन्दिर के अन्दर रहे और कुमार के आने पर भीतर से किवाड़ बन्द कर लिया। सन्ध्या करने क समय महाराजकुमार के साथ मन्दिर के अन्दर घुस कर पुजारी क्या-क्या करते थे, यह दोनों ऐयारों ने उनसे बातों-बातों में पहले ही मालूम कर लिया था। पुजारीजी मन्दिर के अन्दर बैठे कुछ विशेष काम नहीं करते थे, केवल पूजा का सामान कुमार के आगे जमा कर देते और एक किनारे बैठे रहते थे। चलते समय प्रसादी में माला कुमार को देते थे और वे उसे सूंघ आँखों से लगा कर उसी जगह रख चले जाते थे। आज इन सब कामों को हमारे ऐयार पुजारीजी ने ही पूरा किया।
इस मन्दिर में चारों तरफ चार दरवाजे थे। आगे की तरफ तो कई आदमी और पहरे वाले बैठे रहते थे, बाई तरफ के दरवाजे पर होम करने का कुण्ड बना हुआ था, शाहन दरवाजे पर फूलों के कई गमले रखे हए थे, और पिछले दरवाजे बिल्कुल सन्नाटा पड़ता था।
मन्दिर के अन्दर दरवाजा बन्द करके कुमार सन्ध्या करने लगे। प्राणायाम के मय मौका जान कर नकली पुजारी ने आशीर्वाद में देने वाली फूलों की माला में बेहोशी लाया। जब कुमार चलने लगे, पुजारी ने माला गले में डाली, कुमार ने उसे गल से निकाल संघा और माथे से लगाकर उसी जगह रख दिया।
माला सूंघने के साथ ही कुमार का सिर घूमा और वे बेहोश होकर जमीन पर सह ने झटपट उनकी गठरी बाँधी और पिछले दरवाजे की राह बाहर निकल आये, इसके बाद उसी छोटी खिड़की की राह किले के बाहर ही जंगल का रास्ता और दो ही घण्टे में उस जगह जा पहुँचे जहां पण्डित बद्रीनाथ को छोड़ गए थे। ये दोनों ऐयार कुमार कल्याणसिंह को ले गयाजी की तरफ रवाना हुए।
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इश्क भी क्या बुरी बला है? हाय, इस दुष्ट ने जिसका पीछा किया उसे खराब करके छोड़ दिया और उसके लिए दुनिया भर के अच्छे पदार्थ बेकाम और बुरे बना दिये।