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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१७५

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उसके अन्दर जाना और बच कर निकल आना यही मुश्किल है।

किशोरी––यह और ताज्जुब की बात तुमने कही। खैर, ऐसी जिन्दगी से मैं मरना उत्तम समझती हूँ। जो कुछ तुम्हें करना हो, करो और जिस तरह की मदद मुझसे लिया चाहती हो, लो।

लाली––(एक छोटी-सी तस्वीर कमर से निकाल और किशोरी के हाथ में देकर) थोड़ी देर बाद मामूली तौर पर कुन्दन जरूर आपके पास आवेगी, उस समय यह तस्वीर ऐसे ढंग से उसे दिखाइए जिसमें उसे यह न मालूम हो कि आप जान-बूझ कर दिखा रही हैं। फिर उसके चेहरे की जैसी रंगत हो या जो कुछ वह कहे मुझसे कहिए। इस समय तो यही एक काम है।

किशोरी––यह काम मैं बखूबी कर सकूँगी।

किशोरी ने लाली के हाथ से तस्वीर लेकर पहले खुद देखी। इस तस्वीर में एक खोह की हालत दिखाई गई थी, जिसमें एक आदमी उलटा लटक रहा था और एक औरत हाथ में छुरा लिए उसके बदन में घाव लगा रही थी, एक कमसिन औरत खड़ी थी और कोने की तरफ कब्र खोदी जा रही थी।

पाठक, यह तस्वीर ठीक उस समय की थी, जिसका हाल हम पहले भाग के आठवें बयान में लिख आये हैं। मगर वह हाल किशोरी को अभी तक मालूम नहीं हुआ था। किशोरी उस तस्वीर को देख कर बहुत ही हैरान हुई और उसके बारे में लाली से कुछ पूछना भी चाहा, मगर लाली तस्वीर देने के बाद वहाँ न ठहरी, तुरत बाहर चली गई।

लाली के जाने के थोड़ी ही देर बाद कुन्दन आ पहुँची। मगर उस समय किशोरी उस तस्वीर के देखने में अपने को यहाँ तक भूली हुई थी कि कुन्दन का आना उसे तब मालूम हुआ जब उसने पास आकर कुछ देर तक खड़े रहकर पूछा, "कहो बहिन, क्या देख रही हो?"

किशोरी––(चौंककर) है! तुम यहाँ कब से खड़ी हो?

कुन्दन––कुछ देर से। इस तस्वीर में कौन सी ऐसी बात है जिसे तुम बड़े गौर से देख रही हो?

किशोरी––तुमने इस तस्वीर को देखा है?

कुन्दर––सैकड़ों दफे। मैं समझती हूँ कि यह तस्वीर तुम्हें लाली ने खास मुझे दिखाने के लिए दी है। आप लाली से कह दीजिएगा कि मैं इस तस्वीर को देख कर नहीं डर सकती। मैं बिना बदला लिए कभी न छोड़ेंगी क्योंकि जिस दिन पहले-पहले रात को आपसे मुलाकात हुई थी, उस दिन यहाँ से मेरे निकल जाने का सामान बिल्कुल ठीक था। इसी लाली ने मेरे उद्योग को मिट्टी कर दिया और मेरे मददगारों को भी फँसा दिया। खैर, देखा जायगा। मैं आपके मिलने से प्रसन्न थी मगर अफसोस, उसने झूठी बात गढ़ कर आपका दिल भी मेरी तरफ से फेर दिया। तो भी मैं आपके साथ बुराई न करूँगी और जहाँ तक हो सकेगा, उसकी चालबाजियों से आपको होशियार कर दूँगी, मानने न मानने का आपको अख्तियार है।