पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१८४

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इशारे से मना किया, बल्कि वहाँ से भाग जाने के लिए कहा। उसका इशारा समझ ये रुक गये, मगर जी न माना, फिर तालाब में उतरे।

उस नाजनीन को विश्वास हो गया कि कुमार बिना यहाँ आए न मानेंगे, तब उसने इशारे से ठहरने के लिए कहा और यह भी कहा कि मैं किश्ती लेकर आती हूँ। उस औरत ने किश्ती खोली और उस पर सवार हो अजीब तरह से घुमाती-फिराती तालाब के पिछले कोने की तरफ ले गई और कुमार को भी उसी तरफ आने का इशारा किया। कुमार उस तरफ गये और खुशी-खुशी उस औरत के साथ किश्ती पर सवार हुए। वह किश्ती को उसी तरह घुमाती-फिराती मकान के पास ले गई। दोनों आदमी उतर कर अन्दर गये।

उस छोटे-से मकान की सजावट कुमार ने बहुत पसन्द की। वहाँ सभी चीजें जरूरत की मौजूद थीं। बीच का बड़ा कमरा अच्छी तरह से सजा हुआ था, बेशकीमती शीशे लगे हुए थे, काश्मीरी गलीचे, जिनमें तरह-तरह के फूल-बूटे बने हुए थे, छोटीछोटी मगर ऊँची संगमरमर की चौकियों पर सजावट के सामान और गुलदस्ते लगाये हुए थे। गाने-बजाने का सामान भी मौजूद था, दीवारों पर की तस्वीरों को बनाने में मुसौवरों ने अच्छी कारीगरी खर्च की थी। उस कमरे की बगल में एक और छोटा-सा कमरा सजा हुआ था, जिसमें सोने के लिए एक मसहरी बिछी हुई थी। उसकी बगल में एक कोठरी नहाने की थी जिसको जमीन सफेद और स्याह पत्थरों से बनी हुई थी। बीच में एक छोटा-सा हौज बना हुआ था जिसमें एक तरफ से तालाब का जल आता था और दूसरी तरफ से निकल जाता था। इसके अलावा और भी तीन-चार कोठरियाँ जरूरी कामों के लिए मौजूद थीं, मगर उस मकान में सिवाय उस एक औरत के और कोई दूसरी औरत न थी, न कोई नौकर या मजदूरनी ही नजर आती थी।

उस मकान को देख और उसमें सिवाय उस नौजवान नाजनीन के और किसी को न पा कुमार को बड़ा ताज्जुब हुआ। वह मकान इस योग्य था कि बिना चार-पाँच आदमियों के उसकी सफाई या वहाँ के सामान की दुरुस्ती हो नहीं सकती थी।

थके-माँदे और धूप खाये हुए कुँअर इन्द्रजीतसिंह को वह जगह बहुत ही भली मालूम हुई और उस हसीन औरत के अलौकिक रूप की छटा में ऐसे मोहित हुए कि पीछे की सुध बिल्कुल ही जाती रही। बड़े नाज और अन्दाज से उस औरत ने कुमार को कमरे में ले जाकर गद्दी पर बैठाया और आप उनके सामने बैठ गई।

कुमार-तुमने जो कुछ अहसान मुझ पर किया है, मैं किसी तरह उसका बदला नहीं चुका सकता।

औरत-ठीक है, मगर मैं उम्मीद करती हूँ कि आप कोई काम ऐसा भी न करेंगे जो मेरी बदनामी का सबब हो।

कुमार-नहीं-नहीं, मुझसे ऐसी उम्मीद कभी न करना। लेकिन क्या सबब है जो तुमने ऐसा कहा?

औरत-इस मकान में, जहाँ मैं अकेली रहती हूँ, आपका इस तरह आना और देर तक रहना बेशक मेरी बदनामी का सबब होगा।