पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१८६

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भी यहाँ मौजूद हैं और उसे किशोरी से बहुत-कुछ उम्मीद है। मैंने भी इनाम पाने लायक काम किया है। इस समय लाली कुछ अजब ही रंग लाया चाहती है, खैर, दो-तीन दिन में खुलासा हाल लिखूँगी।

आपकी लौंडी–तारा"

कुमार ने उस पुरजे को झटपट पढ़ कर उसी तरह रख दिया और गद्दी पर आकर बैठ गये। सोच और तरद्दु्द ने चारों तरफ से आकर उन्हें घेर लिया। इस पुरजे ने तो उनके दिल का भाव ही बदल दिया। इस समय उनकी सूरत देख कर उनका हाल कोई सच्चा दोस्त भी नहीं मालूम कर सकता था, हाँ, कुछ देर सोचने के बाद इतना तो कुमार ने लम्बी सांस के साथ खुल कर कहा, "खैर, कहाँ जाती है कम्बख्त! मैं बिना कुछ काम किये टलने वाला नहीं।"

इतने ही में वह औरत भी आ गई और बोली, "उठिये, सब सामान दुरुस्त है।" कुमार उसके साथ नहाने वाली कोठरी में गये जिसमें हौज बना हुआ था।

धोती-गमछा और पूजा का सब सामान वहाँ मौजूद था। कुमार ने स्नान और सन्ध्या किया। वह औरत एक चाँदी की रकाबी में कुछ मेवा और खोए की चीजें इनके सामने रख कर चली गई और दूसरी दफे पीने के लिए जल भी लाकर रख गई। उसी समय कुमार ने सुना कि बगल के कमरे में दो औरतें बातें कर रही हैं। उन्हें ताज्जुब हुआ कि ये दूसरी औरतें कहाँ से आई! कुमार भोजन करके उठे, हाथ-मुँह धोकर कोठरी के बाहर निकला चाहते थे कि सामने का दरवाजा खुला और दो औरतें नजर पड़ीं, जिन्हें देखते ही कुमार चौंक पड़े और बोले-"हैं, ये दोनों यहाँ कहाँ से आ गईं!"

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आधी रात के समय सुनसान मैदान में दो कमसिन औरतें आपस में कुछ बातें करती चली जा रही हैं। राह में छोटे-छोटे टीले पड़ते हैं जिन्हें तकलीफ के साथ लाँघने और दम फूलने पर कभी ठहर कर फिर चलने से मालूम होता है कि इन दोनों को इसी समय किसी खास जगह पर पहुँचने या किसी से मिलने की सख्त जरूरत है। हमारे पाठक इन दोनों औरतों को बखूबी पहचानते हैं, इस लिए इनकी सूरत-शक्ल के बारे में कुछ लिखने की जरूरत नहीं, क्योंकि इन दोनों में से एक तो किन्नरी है और दूसरी कमला।

किन्नरी–कमला, देखो, किस्मत का हेर-फेर इसे कहते हैं। एक हिसाब से गयाजी में हम लोग अपना काम पूरा कर चुके थे, मगर अफसोस!

कमला-जहाँ तक हो सका, तुमने किशोरी की मदद जी-जान से की। बेशक किशोरी जन्म-भर याद रखेगी और तुम्हें तो अपनी बहिन मानेगी। खैर, कोई चिन्ता नहीं, हम लोगों को हिम्मत न हारनी चाहिए और न किसी समय ईश्वर को भूलना