पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१९७

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करने लगे कि इन लोगों को कैसे मालूम हो गया कि हम ऐयार हैं क्योंकि तेजसिंह को इस बात का गुमान भी न था कि यहाँ के रहने वाले कुत्ते-बिल्ली को भी ऐयार समझते हैं, मगर यकायक वहाँ से भाग निकलना भी मुनासिब न समझ कर रुके और बोले––

तेजसिंह––तुम कैसे जानते हो कि हम ऐयार हैं?

एक पुजारी––अजी, हम खूब जानते हैं कि सिवाय ऐयार के कोई दूसरा हमारे सामने आ नहीं सकता है! अजी, तुम्हीं लोग तो हमारे कुँअर साहब को पकड़ ले गये हो या कोई दूसरा? बस-बस, यहाँ से चले जाओ, नहीं तो कान पकड़ के खा जायेंगे।

"बस-बस, यहाँ से चले जाओ" इत्यादि सुनते ही तेजसिंह समझ गये कि ये लोग बेवकूफ हैं। अगर हमारे ऐयार होने का इन्हें पूरा विश्वास होता तो ये लोग 'चले जाओ' कभी न कहते, बल्कि हमें गिरफ्तार करने का उद्योग करते। बस, इन्हें भैरोंसिंह और बद्रीनाथ डरा गये हैं और कुछ नहीं।

तेजसिंह खड़े सोच ही रहे थे कि इतने में एक लँगड़ा भिखमंगा हाथ में ठीकरा लिये लाठी टेकता वहाँ आ पहुँचा और पुजारीजी की जय-जयकार मनाने लगा। सूरत देखते ही एक पुजारी चिल्ला उठा और बोला, "लो देखो, एक दूसरा ऐयार भी आ पहुँचा, अबकी शैतान लँगड़ा बनकर आया है। जानता नहीं कि हमलोग बिना पहचाने न रहेंगे। भाग, नहीं तो सिर तोड़ डालूँगा!"

अब तेजसिंह को पूरा विश्वास हो गया कि ये लोग सिड़ी हो गये हैं। जिसे देखते हैं उसे ही ऐयार समझ लेते हैं। तेजसिंह वहाँ से लौटे और सोचते हुए खिड़की की राह[१] दीवार के पार हो जंगल में चले गए कि अब यहाँ के ऐयारों से मिलना चाहिए और देखना चाहिए कि वे कैसे हैं और ऐयारी के फन में कितने तेज हैं।

इस किले के अन्दर माँजा पिलाने वालों की कई दूकानें थीं जिन्हें यहाँ वाले 'अड्डा' कहा करते थे। चिराग जलने के बाद ही से गँजेड़ी लोग वहाँ जमा होते जिन्हें अड्डे का मालिक गाँजा बनाकर पिलाता और उनसे एवज में पैसे वसूल करता। वहाँ तरह-तरह की गप्पें उड़ा करती थीं जिनसे शहर भर कर का हाल झूठ-सच मिला-जुला लोगों को मालूम हो जाया करता था।

शाम होने के पहले ही तेजसिंह जंगल से लौटे। लकड़हारों के साथ-साथ वैरागी के भेष में किले के अन्दर दाखिल हुए और सीधे अड्डे पर चले गये जहाँ गँजेड़ी दम पर दम लगाकर धुएँ का गुबार बाँध रहे थे। यहाँ तेजसिंह का बहुत-कुछ काम निकला

और उन्हें मालूम हो गया कि महाराज के यहाँ केवल दो ऐयार हैं, एक का नाम रामानन्द, दूसरे का नाम गोविन्दसिंह है। गोविन्दसिंह तो कवर कल्याणसिंह को छुड़ाने के लिए चुनार गया हुआ है, दूसरा रामानन्द यहीं मौजूद है। दूसरे दिन तेजसिंह ने


  1. रोहतासगढ़ किले की बड़ी चहारदीवारी में चारों तरफ छोटी-छोटी बहुत-सी खिड़कियाँ थीं जिनमें लोहे के मजबूत दरवाजे लगे रहते थे और दो सिपाही पहला दिया करते थे। फकीर, मोहताज और गरीब रिआया अकसर इन खिलाड़ियों (छोटे दरवाजों) की राह जंगल में से सूखी लकड़ियाँ चुनने या जंगली फल तोड़ने या जरुरी काम करने के लिए बाहर जाया करते थे, मगर चिराग जलते ही खिड़कियाँ बन्द कर दी जाती थीं।