पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१९८

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दरबार में जाकर रामानन्द को अच्छी तरह देख लिया लिया और निश्चय कर लिया और कि आज रात को इसी के साथ ऐयारी करेंगे, क्योंकि रामानन्द का ढाँचा तेजसिंह से बहुत-कुछ मिलता था और यह भी जाना गया था कि महाराज सबसे ज्यादा रामानन्द को मानते और अपना विश्वासपात्र समझते हैं।

आधी रात के समय तेजसिंह सन्नाटा देख रामानन्द के मकान में कमन्द लगा कर चढ़ गये। देखा कि धुर ऊपर वाली मंजिल में रामानन्द मसहरी के ऊपर पड़ा खर्राटे ले रहा है, दरवाजे पर पर्दे की जगह पर जाल लटक रहा है जिसमें छोटी-छोटी घंटियाँ बँधी हुई हैं। पहले तो तेजसिंह ने उसे एक मामूली पर्दा समझा, मगर ये तो बड़े ही चालाक और होशियार थे। यकायक पर्दे पर हाथ डालना मुनासिब न समझ कर उसे गौर से देखने लगे। जब मालूम हुआ कि नालायक ने इस जालदार पर्दे में बहुत सी घंटियाँ लटका रक्खी हैं तो समझ गए कि यह बड़ा ही बेवकूफ है। समझता है कि इन घंटियों के लटकाने से हम बचे रहेंगे, इस घर में जब कोई पर्दा हटाकर आवेगा तो घंटियों की आवाज से हमारी आँख खुल जायेगी, मगर यह मूर्ख नहीं समझता कि ऐयार लोग बुरे होते हैं।

तेजसिंह ने अपने बटुए में से कैची निकाली और बहुत सम्हाल कर पर्दे में से एक-एक करके घंटी काटने लगे। थोड़ी ही देर में सब घंटियों को काट के किनारे कर दिया और पर्दा हटाकर अन्दर चले गए। रामानन्द अभी तक खर्राटे ले रहा था। तेजसिंह ने बेहोशी की दवा उसकी नाक के आगे की, हलका धूरा साँस लेते ही दिमाग में चढ़ गया। रामानन्द को एक छोंक आई जिससे मालूम हुआ कि अब बेहोशी इसे घंटों तक होश में न आने देगी।

तेजसिंह ने बटुए में से एक उस्तरा निकालकर रामानन्द की दाढ़ी और मूँछें मूँड ली और उसके बाल हिफाजत से अपने बटुए में रखकर उसी रंग की दूसरी दाढ़ी और मूँछ उसके लगा दी जो उन्होंने दिन में किले के बाहर जंगल में तैयार की थीं। तेजसिंह इतने ही काम के लिए रामानन्द के मकान पर गए थे और इसे पूरा करके कमन्द के सहारे नीचे उतर आए तथा धर्मशाला की तरफ रवाना हुए।

तेजसिंह जब वैरागी साधु के भेष में रोहतासगढ़ किले के अन्दर आए थे तो उन्होंने धर्मशाला[१] के पास एक बैठक वाले के मकान में छोटी-सी कोठरी किराये पर ले ली थी और उसी में रहकर अपना काम करते थे। उस कोठरी का एक दरवाजा सड़क की तरफ था जिसमें ताला लगाकर उसकी ताली ये अपने पास रखते थे, इसलिए उस कोठरी में जाने-आने के लिए उनको दिन और रात एक समान था।

रामानन्द के मकान से जब तेजसिंह अपना काम करके उतरे, उस वक्त पहर भर रात बाकी थी। धर्मशाला के पास अपनी कोठरी में गए और सवेरा होने के पहले ही अपनी सूरत रामानन्द की सी बना और वही दाढ़ी और मूँछ, जो मूँड लाये थे, दुरुस्त करके खुद लगा कोठरी से बाहर निकले और शहर में गश्त लगाने लगे। सवेरा होते


  1. रोहतासगढ़ में एक ही धर्मशाला थी।