पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/१९९

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ही वे राजमहल की तरफ रवाना हुए और इत्तिला कराकर महाराज के पास पहुँचे।

हम ऊपर लिख आए हैं कि रोहतासगढ़ में रामानन्द और गोविन्दसिंह केवल दो ही ऐयार थे। इन दोनों के बारे में इतना लिख देना जरूरी है कि इन दोनों में से गोविन्दसिंह तो ऐयारी के फन में बहुत ही तेज और होशियार था और वह दिन-रात वही काम किया करता था। रामानन्द भी ऐयारी का फन अच्छी तरह जानता था, मगर उसे अपनी दाढ़ी और मूँछ बहुत प्यारी थीं, इसलिए वह ऐयारी के वे ही काम करता था जिसमें दाढ़ी और मूँछ मुँडाने की जरूरत न पड़े और इसलिए महाराज ने भी उसे दीवान का काम दे रखा था। इसमें भी कोई शक नहीं कि रामानन्द बहुत ही खुशदिल, मसखरा और बुद्धिमान था और उसने अपनी तदबीर से महाराज का दिल अपनी मुट्ठी में कर लिया था।

रामानन्द की सूरत बने हुए तेजसिंह महाराज के पास पहुँचे, मामूल से बहुत पहले रामानन्द को आते देख महाराज ने समझा कि कोई नई खबर लाया है।

महाराज––आज तुम बहुत सवेरे आये! क्या कोई नई खबर है?

रामानन्द––(खासकर) महाराज, हमारे यहाँ कल तीन मेहमान आये हैं।

महाराज––कौन-कौन?

रामानन्द––एक तो खाँसी, जिसने मुझे बहुत ही तंग कर रखा है; दूसरे कुँअर आनन्दसिंह, तीसरे उनके चार ऐयार, जो आज ही कल में किशोरी को यहाँ से निकाल ले जाने का दावा रखते हैं।

महाराज––(हँसकर) मेहमान तो बड़े नाजुक हैं। इनकी खातिर का भी कोई इन्तजाम किया गया है या नहीं?

रामानन्द––इसीलिए तो सरकार में आया हूँ। कल दरबार में उनके ऐयार मौजूद थे। सब के पहले किशोरी का बन्दोवस्त करना चाहिए, उसकी हिफाजत में किसी तरह की कमी न होनी चाहिए।

महाराज––जहाँ तक मैं समझता हूँ, वे लोग किशोरी को तो किसी तरह नहीं ले जा सकते, हाँ, वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों को, जिस तरह भी हो सके, गिरफ्तार करना चाहिए

रामानन्द––वीरेन्द्रसिंह के ऐयार तो अब मेरे पंजे से बच नहीं सकते, वे लोग सूरत बदलकर दरबार में जरूर आयेंगे, और ईश्वर चाहेगा तो आज ही किसी को गिरफ्तार करूँगा, मगर वे लोग बड़े ही धूर्त और चालबाज हैं। प्रायः कैदखाने से भी निकल जाया करते हैं।

महाराज––खैर, हमारे तहखाने से जब वे निकल जायेंगे, तो समझेंगे कि चालाक और धूर्त हैं।

महाराज की इतनी ही बातचीत से तेजसिंह को मालूम हो गया कि यहाँ कोई तहखाना है जिसमें कैदी लोग रखे जाते हैं। अब उन्हें यह फिक्र हुई कि जहाँ तक हो सके, इस तहखाने का ठीक-ठीक हाल मालूम करना चाहिए। यह सोच तेजसिंह ने अपनी लच्छेदार बातचीत में महाराज को ऐसा उलझाया कि मामूली समय से भी आधा घंटे