पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
238
 


पड़ा और उन लोगों ने इस बात की इत्तिला महाराज से की, मगर कुन्दन उस मकान से न लौटी, बल्कि किसी कोने में छिप रही।

हम पहले लिख आये हैं और अब फिर लिखते हैं कि उस मकान के अन्दर तीन दरवाजे थे, एक तो वह सदर दरवाजा था जिसके बाहर पहरा पड़ा करता था, दूसरा खुला पड़ा था, तीसरे दरवाजे को खोलकर किशोरी को साथ लिये लाली गई थी।

जो दरवाजा खुला था उसके अन्दर एक दालान था। इसी दालान तक लाली और किशोरी को खोजकर पीछा करनेवाले लौट गये थे, क्योंकि कहीं आगे जाने का रास्ता उन लोगों को नहीं मिला था। जब वे लोग मकान के बाहर निकल गये तो कुन्दन ने अपनी कमर से गठरी खोली और उसमें से सामान निकालकर मोमबत्ती जलाने के बाद चारों तरफ देखने लगी।

यह एक छोटा-सा दालान था मगर चारों तरफ से बन्द था। इस दालान की दीवारों में तरह-तरह की भयानक तस्वीरें बनी हुई थीं, मगर कुन्दन ने उन पर कुछ भी ध्यान न दिया। दालान के बीचोंबीच बित्ते-बित्ते भर के ग्यारह डिब्बे लोहे के रखे हुए थे और हरएक डिब्बे पर आदमी की खोपड़ी रखी हुई थी। कुन्दन उन्हीं डिब्बों को गौर से देखने लगी। ये डिब्बे गोलाकार एक चौकी पर सजाये हुए थे। एक डिब्बे पर आधी खोपड़ी थी और बाकी डिब्बों पर पूरी-पूरी। कुन्दन इस बात को देखकर ताज्जुब कर रही थी कि इसमें से एक खोपड़ी जमीन पर क्यों पड़ी हुई है तथा औरों की तरह उसके नीचे डिब्बा क्यों नहीं है? कुन्दन ने उस डिब्बे से, जिस पर आधी खोपड़ी रखी हुई थी, गिनना शुरू किया। मालूम हुआ कि सातवें नम्बर की खोपड़ी के नीचे डिब्बा नहीं है। यकायक कुन्दन के मुंह से निकला, "ओह-ओह, बेशक, इसके नीचे का डिब्बा लाली ले गई क्योंकि असली तालीवाला डिब्बा वही था, मगर यह हाल उसे क्यों कर मालूम हुआ?"

कुन्दन ने फिर गिनना शुरू किया और टूटी हुई खोपड़ी से पाँचवें नम्बर पर रुक गई, खोपड़ी उठाकर नीचे रख दी और डिब्बे को उठा लिया। अब अच्छी तरह गौर से देखकर जोर से जमीन पर पटका। डिब्बे के चार टुकड़े हो गए, मानो चार जगहों से जोड़ लगाया हुआ हो। उसके अन्दर से एक ताली निकली जिसे देख कुन्दन हँसी और खुश होकर आप ही आप बोली, "अब देखो, लाली को मैं कैसा छकाती हूँ।"

कुन्दन ने उस ताली से काम लेना शुरू किया। उसी दालान में दीवार के साथ एक आलमारी थी जिसे कुन्दन ने उसी ताली से खोला। नीचे उतरने के लिए सीढियाँ नजर आईं और वह बेखौफ नीचे उतर गई। एक कोठरी में पहुंची जहाँ एक छोटे सिंहासन के ऊपर हाथ-भर लम्बी और इससे कुछ कम चौड़ी ताँबे की एक पट्टी रखी हुई थी। कुन्दन ने उसे उठाकर अच्छी तरह देखा, मालूम हुआ कि कुछ लिखा हुआ है, अक्षर खुदे हुए हुए थे और उन पर किसी तरह की चिकनाई या तेल मला हुआ था जिसके सबब से पटिया अभी तक जंग लगने से बची हुई थी। कुन्दन ने उस लेख को बड़े गौर से पढ़ा और हँसकर चारों तरफ देखने लगी। उस कोठरी की दीवार में दो तरफ दो दरवाजे थे और एक पल्ला जमीन में था। उसने एक दरवाजा खोला तो ऊपर चढ़ने