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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/२४७

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के लिए सीढ़ियाँ मिलीं। वह बेखौफ ऊपर चढ़ गई और एक ऐसी तंग कोठरी में पहुँची जिसमें चार-पाँच आदमी से ज्यादा के बैठने की जगह न थी। मगर इस कोठरी के चारों तरफ की दीवारों में छोटे-छोटे कई छेद थे, जलती हुई बत्ती बुझाकर उन छेदों में से एक छेद में आँख लगाकर कुन्दन ने देखा।

कुन्दन ने अपने को ऐसी जगह पाया, जहाँ से वह भयानक मूर्ति, जिसके आगे एक औरत बलि दी जा चुकी थी और जिसका हाल ऊपर लिख आये हैं, साफ दिखाई देती थी। थोड़ी देर में कुन्दन ने वहाँ महाराज दिग्विजयसिंह, तहखाने के दारोगा; लाली, किशोरी और बहुत-से आदमियों को देखा। उसके देखते-ही-देखते एक औरत की उस मूरत के सामने बलि दी गई और कुँअर आनन्दसिंह ऐयारों सहित पकड़े गये। इस तहखाने में से किशोरी और कुँअर आनन्दसिंह का भी कुछ हाल हम ऊपर लिख आये हैं वह सब कुन्दन ने देखा था। आखिर में कुन्दन नीचे उतर आई और उस पल्ले को, जो जमीन में था, उसी ताली से खोलकर तहखाने में उतरने के बाद बत्ती बाल कर देखने लगी। छत की तरफ निगाह करने से मालूम हुआ कि वह सिंहासन पर बैठी हुई भयानक मूर्ति, जो भीतर की तरफ से बिल्कुल (सिंहासन-सहित) पोली थी, उसके सिर के ठीक ऊपर है।

कुन्दन फिर ऊपर आई और दीवार में लगे हुए दूसरे दरवाजे को खोलकर एक सुरंग में पहुँची। कई कदम जाने के बाद एक छोटी खिड़की मिली। उसी ताली से कुन्दन ने उस खिड़की को भी खोला। अब वह उस रास्ते में पहुँच गई जो दीवानखाने और तहखाने में आने-जाने के लिए था और जिस राह से महाराज आते थे। तहखाने से दीवानखाने में जाने तक जितने दरवाजे थे, सभी को कुन्दन ने अपनी ताली से बन्द कर दिया। ताले के अलावे उन दरवाजों में एक-एक खटका और था, उसे भी कुन्दन ने चढ़ा दिया। इस काम से छुट्टी पाने के बाद फिर वहाँ पहुँची जहाँ से वह भयानक मूर्ति और आदमी सब दिखाई दे रहे थे। कुन्दन ने अपनी आँखों से राजा दिग्वजयसिंह की घबराहट देखी जो दरवाजा बन्द हो जाने से उन्हें हुई थी।

मौका देखकर कुन्दन वहाँ से उतरी और उस तहखाने में जो उस भयानक मूर्ति के नीचे था, पहुँची। थोड़ी देर तक कुछ बकने के बाद कुन्दन ने ही वे शब्द कहे जो उस भयानक मूर्ति के मुंह से निकलते हुए राजा दिग्विजयसिंह या और लोगों ने सुने थे और जिनके मुताबिक किशोरी बारह नम्बर की कोठरी में बन्द कर दी गई थी। असल में वे शब्द कुन्दन ही के कहे हुए थे, जो सब लोगों ने सुने थे।

कुन्दन वहाँ से निकलकर यह देखने के लिए कि राजा किशोरी को उस कोठरी में बन्द करता है या नहीं, फिर उस छत पर पहुँची जहाँ से सब लोग दिखाई पड़ते थे। जब कुन्दन ने देखा कि किशोरी उस कोठरी में कैद कर दी गई तो वह नीचे तहखाने में उतरी। उसी जगह से एक रास्ता था जो उस कोठरी के ठीक नीचे पहुँचता था जिसमें किशोरी बन्द की गई थी। वहाँ की छत इतनी नीची थी कि कुन्दन को बैठकर जाना पड़ा। छत में एक पेंच लगा हुआ या जिसके घुमाने से एक पत्थर की चट्टान हट गई और आँचल से मुँह ढाँपे कुन्दन किशोरी के सामने जा खड़ी हुई।