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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/३३

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पन्नालाल-बर्तन तो है, मगर छोटा है। तुम्ही किसी मिट्टी के ठिलिए में जल दे दो।

हलवाई-एक घड़ा जल के लिए आठ आने और देने पड़ेंगे।

पन्नालाल-इतना अन्धेर! खैर, हम देंगे।

पूरी, मिठाई और एक घड़ा जल लेकर चारों ऐयार वहाँ से चले मगर यह खबर किसी को भी न थी कि कुछ दूर पीछे दो आदमी साथ लिए छिपता हुआ हलवाई भी आ रहा है। मैदान में एक बड़े पत्थर की चट्टान पर बैठ चारों ने भोजन किया जल पिया और हाथ-मुंह धो निश्चिन्त हो धीरे-धीरे आपस में बातचीत करने लगे। आधा घंटा भी न बीता होगा कि चारों बेहोश होकर चट्टान पर लेट गये। तभी दोनों आदमियों को साथ लिए हलवाई इनकी खोपड़ी पर आ मौजूद हुआ।

हलवाई के साथ आये दोनों आदमियों ने बद्रीनाथ, ज्योतिषीजी और पन्नालाल की मुश्कें कस डालीं और कुछ सुंघाकर भैरोंसिंह को होश में लाकर बोले, "वाह जी अजायबसिंह! आपकी चालाकी तो खूब काम कर गयी! अब तो शिवदत्तगढ़ में आए हुए पाँचों नालायक हमारे हाथ फँसे! महाराज से सबसे ज्यादे इनाम पाने का काम तो आप ही ने किया!"

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बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेन्द्रसिंह और वीरेन्द्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चन्द्रकान्ता, चपला, चम्पा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पहरा बराबर बदलता रहता है। खुशी के दिन वात की बात में निकल गये, कुछ मालूम न पड़ा, यहाँ तक कि मुझे भी कोई बात उन लोगों की लिखने लायक न मिली, लेकिन अब उन लोगों को मुसीबत की घड़ी काटे नहीं कटती। कौन जानता था कि गया-गुजरा शिवदत्त फिर बला की तरह निकल आयेगा? किसे खबर थी कि बेचारी चन्द्रकान्ता की गोद से पले-पलाये दोनों होनहार लड़के यों अलग कर दिये जायेंगे ? कौन साफ कह सकता था कि इन लोगों की वंशावली और राज्य में जितनी तरक्की होगी, यकायक उतनी ही ज्यादा आफतें आ पड़ेंगी? खैर बुशी के दिन तो उन्होंने काटे, अब मुसीबत की घड़ी कौन झेले? हाँ, बेचारे जगन्नाथ ज्योतिषी ने इतना जरूर कह दिया था कि वीरेन्द्रसिंह के राज्य और वंश की बहुत-कुछ तरक्की होगी, मगर मुसीबत को लिए हुए। खैर, आगे जो कुछ होगा देखा जायेगा, पर इस समय तो सबके सब तर दुद में पड़े हैं। देखिए, अपने एकान्त के कमरे में महाराज सुरेन्द्रसिंह कैसी चिन्ता में बैठे हैं और बाईं तरफ गद्दी का कोना दबाये राजा वीरेन्द्रसिंह अपने सामने बैठे हुए जीतसिंह की सूरत किस बेचैनी से देख रहे हैं। दोनों बाप-बेटा अर्थात देवीसिंह और तारासिंह अपने पास ऊपर के दर्जे पर बैठे हुए बुजुर्ग और गुरु के समान जीतसिंह की तरफ झुके हुए इस उम्मीद में बैठे हैं कि देखें, अब आखिरी