सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
49
 


रखा था, यहाँ तक कि उसने अपना मतलब साध लिया और न मालूम किस ढंग से उन्हें लेकर गायब हो गई। उस बूढ़े नौकर की जुबानी जे उनके साथ गया था मालूम हुआ कि माधवी के साथ कई औरतें भी थीं जो इन दोनों भाइयों को देखते ही भागीं। आनन्दसिंह उन औरतों के पीछे लपके लेकिन वे भुलावा देकर निकल गयीं और आनन्दसिंह ने लौटकर आने पर अपने भाई को भी न पाया, तब गंगा किनारे पहुँच डोंगी पर बैठे हुए खिदमतगार से सब हाल कहा।

किशोरी—यह कैसे मालूम हुआ कि माधवी ने मेरी सुरत बनाकर उन्हें धोखा दिया?

कमला-लौटती समय जब मैं उस जंगल के कुछ इधर निकल आई, जो अब बिलकुल साफ हो गया है, तो जमीन पर पड़ी हुई एक जड़ाऊ 'कँगनी' नजर आई। उठाकर देखा। मैं उस कँगनी को खूब पहचानती थी, कई दफे माधवी के हाथ में देख चुकी थी, बस मुझे पूरा यकीन हो गया कि यह काम इसी का है, आखिर उसके घर पहुँची और उसकी हमजोलियों की बातचीत से निश्चय कर लिया।

किशोरी-देखो, राँड ने मेरे ही साथ दगाबाजी की!

कमला-कैसी कुछ!

किशोरी-तो इन्द्रजीतसिंह अब उसी के घर में होंगे?

कमला-नहीं, अगर वहाँ होते तो क्या मैं इस तरह खाली लौट आती?

किशोरी–फिर उन्हें कहाँ रखा है?

कमला-इसका पता नहीं लगा। मैंने चाहा था कि खोज लगाऊँ मगर तुम्हारी तरफ खयाल करके दौड़ी आई।

किशोरी—(ऊँची साँस लेकर) हाय, उस शैतान की बच्ची ने मेरा ध्यान उनके दिल से निकाल दिया होगा! इतना कह किशोरी रोने लगी, यहाँ तक कि हिचकी बंध गयी। कमला ने उसे बहुत समझाया और कसम खाकर कहा कि मैं अन्न उसी दिन खाऊँगी, जिस दिन इन्द्रजीतसिंह को तुम्हारे पास ला बैठाऊँगी।

पाठक इस बात के जानने की इच्छा रखते होंगे कि यह किशोरी कौन है? इस का नाम हम पहले लिख आये हैं और अब फिर कहे देते हैं कि यह महाराज शिवदत्त की लड़की है, मगर यह किसी दूसरे मौके से मालूम होगा कि किशोरी शिवदत्तगढ़ से बाहर क्यों कर दी गयी या बाप का घर छोड़ अपने ननिहाल में क्यों दिखाई देती है।

थोड़ी देर सन्नाटा रहने बाद फिर किशोरी और कमला में बातचीत होने लगी।

किशोरी–कमला, तू अकेली क्या कर सकेगी?

कमला—मैं तो वह कर सकूँगी जो चपला और चम्पा के किये भी न हो सकेगा।

किशोरी-तो क्या आज तू फिर जायगी?

कमला-हाँ जरूर जाऊँगी, मगर दो-एक बातों का फैसला आज ही तुमसे कर लूँगी, नहीं तो पीछे बदनामी देने को तैयार होओगी।

किशोरी–बहिन, ऐसी क्या बात है जो मैं तुझी पर बदनामी देने पर उतारू