पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/५८

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हो जाऊंगी? एक तू ही तो मेरी दुःख-सुख की साथी है।

कमला-यह सब सच है, मगर आपस का मामला बहुत टेढ़ा होता है।

किशोरी-खैर, कुछ कह तो सही!

कमला-कुंअर इन्द्रजीतसिंह को तुम चाहती हो, इसी सबब से उनके कुटुम्ब भर की भलाई तुम अपना धर्म समझती हो, मगर तुम्हारे पिता से और उस घराने से पूरा बैर बंध रहा है, ताज्जुब नहीं कि तुम्हारी और इन्द्रजोतसिंह की भलाई करते-करते मेरे सबब से तुम्हारे पिता को तकलीफ पहुँचे, मगर ऐसा हुआ तो बेशक तुम्हें रंज होगा।

किशोरी-इन बातों को न सोच! मैंने तो उसी दिन अपने घर को इस्तीफा दे दिया जिस दिन पिता ने मुझे निकाल बाहर किया, अगर ननिहाल में मेरा ठिकाना न होता या मेरे नाना का उनको खौफ न होता तो शायद वे उसी दिन मुझे वैकुण्ठ पहुँचा देते। अब मुझे उस घर से रत्ती भर मुहब्बत नहीं है। पर बहन, तूने यह बड़ा काम किया कि उस दुष्टा को वहां से निकाल लाई और मेरे हवाले किया। जब मैं गम की मारी घबड़ा जाती हूँ तभी उस पर दिल का बुखार निकालती हूँ जिससे कुछ ढाढ़स हो जाती है।

कमला-मुझे तो अभी तक उसके ऊपर गुस्सा निकालने का मौका ही न मिला, कहो तो आज चलते-चलाते मैं भी कुछ बुखार निकाल लूँ?

किशोरी-क्या हर्ज है, ले आ।

कमला तभी कमरे के बाहर चली गयी। उसके पीछे आधे घंटे तक किशोरी को चुपचाप कुछ सोचने का मौका मिला। उसकी सहेलियाँ वहाँ मौजूद थीं मगर किसी को बोलने का हौसला नहीं पड़ा।

आधे घण्टे बाद कमला एक कैदी औरत को लिए हुए फिर उस कमरे में दाखिल हुई।

इस औरत की उम्र तीस वर्ष से कम न होगी, चेहरे-मोहरे और रंगत से दुरुस्त थी, कह सकते हैं कि अगर इसे अच्छे कपड़े और गहने पहनाये जायें तो बेशक हसीनों की पंक्ति में बैठाने लायक हो, पर न मालूम इसकी ऐसी दुर्दशा क्यों कर रखी है और किस कसूर पर कैदी बना डाला है।

इस औरत को देखते ही किशोरी का चेहरा लाल हो गया और मारे गुस्से के तमाम बदन थर-थर काँपने लगा। कमला ने उसकी यह दशा देख अपने काम में जल्दी की और उन सहेलियों में से जो उस कमरे में मौजूद सब कुछ देख रही थीं एक की तरफ कुछ इशारा करके हाथ बढ़ाया। वह दूसरे कमरे में चली गई और एक बेंत लाकर उसने कमला के हाथ में दे दिया।

कई औरतों ने मिलकर उस कैदी औरत के हाथ-पैर एक साथ ही मजबूत बाँ और उसे गेंद की तरह लुढ़का दिया।

यहाँ तक तो किशोरी चुपचाप देखती रही, मगर जब कमला कमर कसकर, बेंत लेकर खड़ी हो गई तो किशोरी का कोमल कलेजा दहल गया और इसके आगे जो कुछ होने वाला था उसे देखने की ताब न लाकर वह दो सहेलियों को साथ ले कमरे के बाहर