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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/५९

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निकल बाग की रविशों पर टहलने लगी।

किशोरी चाहे बाहर चली गई, मगर कमरे के अन्दर से आती हुई चिल्लाने की आवाज बराबर उसके कानों में पड़ती रही। थोड़ी देर बाद ही कमला किशोरी के पास पहुँची जो अभी तक बाग में टहल रही थी।

किशोरी–कहो, उसने कुछ बताया या नहीं?

कमला—कुछ नहीं, खैर कहाँ जाती है, आज नहीं कल, कल नहीं परसों, आखिर बतावेगी ही। अब मुझे रुखसत करो क्योंकि बहुत-कुछ काम करना है!

किशोरी–अक्छा जा, मैं भी अब घर जाती हूँ, नहीं तो नानी इसी जगह पहुँचकर रंज होने लगेंगी। (कमला के गले मिलकर) देख अब मैं तेरे ही भरोसे पर जी रही हूँ!

कमला-जब तक दम में दम है तब तक तेरे काम से बाहर नहीं हूँ।

कमला वहाँ से रवाना हुई। उसके जाने के बाद किशोरी भी अपनी सखियों को साथ ले वहाँ से चली और थोड़ी ही दूर पर एक बड़ी हवेली के अन्दर जा पहुँची।

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अब हम आपको एक दूसरी सरजमीन पर ले चलकर एक-दूसरे ही रमणीक स्थान की सैर कराते हैं, इसके साथ-ही-साथ बड़े-बड़े ताज्जुब के खेल और अद्भुत बातों को दिखाकर अपने किस्से का सिलसिला दुरुस्त करना चाहते हैं। मगर यहाँ एक जरूरी बात लिख देने की इच्छा होती है जिसके जानने से आगे चलकर आपको कुछ ज्यादा आनन्द मिलेगा।

इस जगह बहुत-सी अद्भुत बातों को पढ़कर आप ऐसा न समझ लें कि यह तिलिस्म है और इसमें ऐसी बातें हुआ ही करती हैं, बल्कि उसे दुरुस्त और होने वाली समझकर खूब गौर करें क्योंकि अभी यह पहला ही हिस्सा है। इस सन्तति के चार हिस्सों में तो हम तिलिस्म का नाम भी न लेंगे, आगे चलकर देखा जायगा।

आप ध्यान कर लें कि एक अच्छे रमणीक स्थान में पहुँचकर सैर कर रहे हैं। यह जमीन जो लगभग हजार गज के चौड़ी और इतनी ही लम्बी होगी, चारों तरफ की चार खूबसूरत पहाड़ियों से घिरी हुई है। बीच की सब्जी और गुलबूटों की बहार देखने ही लायक है। इस कुदरती बगीचे में जंगली फूलों के पेड़ ज्यादे दिखाई देते हैं, उन्हीं में मिले-जुले गुलाबों के पेड़ भी बेशुमार हैं और कोई भी ऐसा नहीं कि जिनमें सुन्दर कलियाँ और फूल न दिखाई देते हों। बीच में बड़े-बड़े तीन झरने भी खूबसूरती से बह रहे हैं। बरसात का मौसम है, चारों तरफ से पहाड़ों पर से गिरा हुआ जल इन झरनों में जोश मार रहा है। पूरब तरफ पहाड़ी के नीचे पहुँचकर ये तीनों झरने एक हो गए हैं और अन्दाज से ज्यादे आया हुआ जल गड़हे में गिरकर न मालूम कहाँ निकल जाता है। यहाँ