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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/९३

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माधवी-क्या वीरेन्द्रसिंह को पता लग गया कि उनका लड़का यहाँ कैद है

तिलोत्तमा-पता नहीं लगा है तो यों ही उनके सब ऐयार यहाँ पहुँच ऊधम मचा रहे हैं?

माधवी-तो तूने मुझे पहले खबर क्यों न की?

तिलोत्तमा-क्या खबर करती, तुझे इस खबर को सुनने की छुट्टी भी है!

माधवी-तिलोत्तमा, ऐसी जली-कटी बातों का कहना छोड़ दे और मुझे ठीक-ठीक बता कि क्या हुआ और क्या हो रहा है? सच पूछे तो मैं तेरे ही भरोसे कूद रही हूँ। मैं खूब जानती हूँ कि सिवाय तेरे मेरी रक्षा करने वाला कोई नहीं। मुझे विश्वास था कि इन चार पहाड़ियों के बीच जब तक मैं हूँ, मुझ पर किसी तरह की आफत न आवेगी, मगर अब तेरी बातों से यह उम्मीद बिलकुल जाती रही।

तिलोत्तमा–ठीक है, तुझे अब ऐसा भरोसा न रखना चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि मैं तेरे लिए जान देने को तैयार हूँ, मगर तू ही बता कि वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों के सामने मैं क्या कर सकती हूँ, बेचारी ललिता मेरी मददगार थी, सो वह भी किशोरी को फँसाने में आप पकड़ी गयी, अब अकेली मैं क्या-क्या करूँ?

माधवी-तू सब-कुछ कर सकती है, हिम्मत मत हार, हाँ, पहले यह बता कि वीरेन्द्रसिंह के ऐयार यहाँ क्योंकर आये और अब क्या कर रहे हैं?

तिलोत्तमा–अच्छा सुन, मैं सब-कुछ कहती हूँ। यह तो मैं नहीं जानती कि पहले-पहल यहाँ कौन आया, हाँ, जब से चपला आयी है तब से मैं थोड़ा-बहुत हाल जानती हूँ।

माधवी (चीखकर) क्या चपला यहाँ पहुँच गयी?

तिलोत्तमा–हाँ पहुँच गयी, उसने यहाँ पहुँचकर उस सुरंग की दूसरी ताली भी तैयार कर ली जिस राह से तू आती-जाती है और जिसमें मैंने किशोरी को कैद कर रखा है। एक दिन रात को जब तू इन्द्रजीतसिंह को सोता छोड़ दीवान साहब से मिलने के लिए गयी तो वह चपला भी इन्द्रजीतसिंह को साथ ले अपनी ताली से सुरंग का ताला खोल तेरे पीछे-पोछे चली गयी और छिपकर तेरी और दीवान साहब की कैफियत इन दोनों ने देख ली। यह न समझ कि इन्द्रजीतसिंह बेचारे सोधे-सादे हैं और तेरा हाल नहीं जानते, वे सब-कुछ जान गये।

माधवी—(कुछ देर तक सोच में डूबी रहने के बाद) तूने चपला को कैसे देखा?

तिलोत्तमा-मेरा बल्कि ललिता का भी कायदा है कि रात को तीन-चार दफे उठ कर इधर-उधर घूमा करती हैं। उस समय मैं अपने दालान के खम्भे की आड़ में खड़ी इधर-उधर देख रही थी जब चपला और इन्द्रजीतसिंह तेरा हाल देख कर सुरंग से लौटे थे। इसके बाद वे दोनों बहुत देर तक नहर के किनारे खड़े बात-चीत करते रहे। बस, उसी समय से मैं होशियार हो गई और अपनी कार्रवाई करने लगी।

माधवी-इसके बाद भी कुछ हुआ?

तिलोत्तमा–हाँ, बहुत-कुछ हुआ, सुनो मैं कहती हूँ। दूसरे दिन मैं ललिता को साथ ले उस तालाब पर पहुँची, देखा कि वीरेन्द्रसिंह के कई ऐयार वहाँ बैठे बातचीत