पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/९४

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कर रहे हैं। मैंने छिप कर उनकी बातचीत सुनी। तब मालूम हुआ कि वे लोग दीवान साहब, सेनापति और कोतवाल को भी गिरफ्तार करना चाहते हैं। मुझे उस समय एक दिल्लगी सूझी। जब वे लोग राय पक्की करके वहाँ से जाने लगे, मैंने वहाँ से कुछ दूर हट कर एक छींक मारी और दूर भाग गई।

माधवी-(मुस्करा कर) वे लोग घबरा गये होंगे!

तिलोत्तमा–बेशक घबराये होंगे, उसी समय गाली-गुफ्तार करने लगे, मगर हम दोनों ने वहां ठहरना पसन्द नहीं किया।

माधवी-फिर क्या हुआ?

तिलोत्तमा–मैंने तो सोचा था कि वे लोग मेरी छींक से डर कर अपनी कार्रवाई रोकेंगे, मगर ऐसा नहीं हुआ। कुल दो ही दिन की मेहनत में उन लोगों ने कोतवाल को गिरफ्तार कर लिया, भैरोंसिंह और तारासिंह ने उन्हें बुरा धोखा दिया।

इसके बाद तिलोत्तमा ने कोतवाल साहब के गिरफ्तार होने का पूरा हाल, जैसा हम ऊपर लिख आए हैं माधवी से कहा, तभी साथ ही उसने यह भी कह दिया कि दीवान साहब को भी शक हो गया है कि तूने किसी मर्द को यहाँ लाकर रक्खा है और उसके साथ आनन्द कर रही है।

तिलोत्तमा की जुबानी यह सब हाल सुनकर माधवी सोच-सागर में गोते लगाने लगी और आधे घण्टे तक उसे तन-बदन की सुध न रही। इसके बाद उसने अपने को सँभाला और फिर तिलोत्तमा से बातचीत करना आरम्भ किया।

माधवी-खैर, जो हुआ सो हुआ, यह बता कि अब क्या करना चाहिए?

तिलोत्तमा–मुनासिब तो यही है कि इन्द्रजीतसिंह और किशोरी को छोड़ दो, तब फिर तुम्हारा कोई कुछ न बिगाड़ेगा।

माधवी-(तिलोत्तमा के पैरों पर गिर कर और रो कर) ऐसा न कह! अगर मुझ पर तेरा सच्चा प्रेम है, तो ऐसा करने के लिए जिद न कर! अगर मेरा सिर चाहे तो काट ले, मगर इन्द्रजीतसिंह को छोड़ने के लिए मत कह।

तिलोत्तमा–अफसोस कि इन बातों की खबर दीवान साहब को भी नहीं कर सकती, बड़ी मुश्किल है। अच्छा, मैं उद्योग करती हूँ, मगर निश्चय नहीं कह सकती कि क्या होगा?

माधवी-तुम चाहोगी तो सब काम हो जायगा।

तिलोत्तमा–पहले तो मुझे ललिता को छुड़ाना मुनासिब है।

माधवी-अवश्य।

तिलोत्तमा–हाँ, एक काम इसके भी पहले करना चाहिए, नहीं तो किशोरी दो ही दिन में यहाँ से गायब हो जायगी और ताज्जुब नहीं कि धड़धड़ाते हुए वीरेन्द्रसिंह के कई ऐयार यहाँ पहुँच जायँ और मनमानी धूम मचावें।

माधवी-शायद तुम्हारा मतलब उस पानी वाली सुरंग को बन्द कर देने से हो?

तिलोत्तमा–हाँ।