पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/९५

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माधवी–मैं भी अब यही मुनासिब समझती हूँ। मैं सोचती हूँ कि जरूर कोई ऐयार उस रोज उसी पानी वाली सुरंग की राह से यहाँ तक आया था जिसकी देखा-देखी इन्द्रजीतसिंह उस सुरंग में घुसे थे, मगर बेचारे पानी में आगे नहीं जा सके और लौट आये। तुम जरूर उस सुरंग को अच्छी तरह बन्द कर दो जिसमें कोई ऐयार उस राह से आने-जाने न पावे। तुम लोगों के लिए वह रास्ता है ही, जिधर से मैं आती हूँ। हाँ, एक बात और है, तू अपने पिता को मेरी मदद के लिए क्यों नहीं ले आती? उनसे और मेरे से बड़ी दोस्ती थी मगर अफसोस, आजकल वे मुझसे बहुत रंज हैं!

तिलोत्तमा–मैं कल उनके पास गई थी पर वे किसी तरह नहीं मानते। तुमसे बहुत ही ज्यादे रंज हैं, मुझ पर बहुत बिगड़ते थे, अगर मैं तुरंत न चली आती तो बेइज्जती के साथ निकलवा देते, अब मैं उनके पास कभी न जाऊँगी।

माधवी-खैर, जो कुछ मेरी किस्मत में है, उसे भोगूंगी। अच्छा, अब तो सब की आमद-रफ्त इसी सुरंग से होगी, तो अब किशोरी को वहाँ से निकाल कर भी किसी दूसरी जगह रखना चाहिए।

तिलोत्तमा–उस सुरंग से बढ़कर कौन-सी ऐसी जगह है जहाँ उसे रक्खोगी? दीवान साहब का भी तो डर है!

थोड़ी देर तक इन दोनों में बातचीत होती रही। इसके बाद इन्द्रजीतसिंह के सो कर उठने की खबर आई। शाम भी हो चुकी थी, माधवी उठ कर उनके पास गई और तिलोत्तमा पानी वाली सुरंग को बन्द करने की फिक्र में लगी।

पाठक, इस जगह मामला बड़ा ही गोलमाल हो गया। तिलोत्तमा ने चालाकी से वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों की कार्रवाई देख ली। माधवी और तिलोत्तमा की बातचीत से आप यह भी जान गये होंगे कि बेचारी किशोरी उसी सुरंग में कैद की गई है जिसकी ताली चपला ने बनाई थी या जिस सुरंग की राह चपला और कुंअर इन्द्रजीतसिंह ने माधवी के पीछे जाकर यह मालूम कर लिया था कि वह कहाँ जाती है। उस सुरंग की दूसरी ताली तो मौजूद ही थी, किशोरी को छुड़ाना चपला के लिए कोई बड़ी बात न थी, अगर तिलोत्तमा होशियार होकर उस आने-जाने वाली राह, अर्थात् पानी वाली सुरंग, को जिसमें इन्द्रजीतसिंह गये थे और आगे जलमय देख कर लौट आये थे, पत्थर के ढोंकों से मजबूती के साथ बन्द न कर देती। कुँअर इन्द्रजीतसिंह को मालूम हो ही गया था कि हमारे ऐयार लोग इसी राह से आया-जाया करते हैं, अब उन्होंने अपनी आँखों से यह भी देख लिया कि यह सुरंग बखूबी बन्द कर दी गई है। उनकी नाउम्मीदी हर तरह से बढ़ने लगी, उन्होंने समझ लिया कि अब कमला से मुलाकात न होगी और बाहर हमारे छुड़ाने के लिए क्या-क्या तरकीब हो रही है, इसका पता भी बिल्कुल न लगेगा। सुरंग की नई ताली जो चपला ने बनाई थी वह उसी के पास थी, तो भी इन्द्रजीतसिंह ने हिम्मत न हारी। उन्होंने जी में ठान लिया कि अब जबर्दस्ती से काम लिया जाएगा, जितनी औरतें यहाँ मौजूद हैं सब की मुश्क बाँध नहर के किनारे डाल देंगे और सुरंग की असली ताली माधवी के पास से लेकर सुरंग की राह माधवी के महल में पहुँच कर खून-खराबी मचावेंगे। आखिर क्षत्रियों को इससे बढ़कर लड़ने-भिड़ने और जान देने का कौन-सा