पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/११४

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बढ़ा चला आता है। अच्छा है, किसी तरह वह सायत आए भी तो। हे सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर, मैं तुम्हीं को गवाह रखती हूँ क्योंकि तुम खूब जानते हो कि मैं निर्दोष इस दुनिया से उठी जाती हूँ और इन्द्रजीतसिंह की मुहब्बत के सिवाय अपने साथ कुछ भी नहीं लिए जाती, हाँ उस प्यारे की..."

इसके बाद बहुत देर तक राह देखने पर भी कुछ सुनाई न दिया। कमलिनी ने समझा कि या तो इसे कमजोरी से गश आ गया और या इस हसरत की मारी बेचारी का दम ही निकल गया। इस समय कमलिनी ने जो कुछ देखा या सुना, वह उसे बेसुध करने के लिए काफी था। कमलिनी जार-जार रो रही थी, यहाँ तक कि हिचकी बँध गई और उसे इस बात का ध्यान बिल्कुल ही जाता रहा कि मैं यहाँ किस काम के लिए आई हूँ क्या कर रही हूँ और इस समय कैसे खतरे में फँसी हुई हूँ।

कमलिनी के लिए यह समय बड़े ही संकट का था। वह नहीं चाहती थी कि बेचारी किशोरी का पूरा-पूरा हाल जाने या उसे किसी तरह की मदद पहुँचाए बिना यहाँ से चली जाय और साथ ही इसके भूतनाथ के कागजात को भी, जिनके लेने का वह पूरापूरा उद्योग कर चुकी थी, किसी तरह छोड़ नहीं सकती थी, क्योंकि यह मौका निकल जाने पर फिर उनका हाथ लगना बहुत ही कठिन था।

किशोरी की हालत पर अफसोस करती हुई कमलिनी अभी नीचे देख ही रही थी कि यकायक उस कमरे का दरवाजा खुला और एक खूबसूरत नौजवान अमीराना पोशाक पहने अन्दर आता हुआ दिखाई पड़ा। उसके पीछे हाथ में पंखा लिए एक लौंडी भी थी जिसने अन्दर पहुँचने पर उस दरवाजे को उसी तरह बन्द कर दिया।

इस नौजवान की उम्र लगभग पचीस वर्ष के होगी। दर्म्याना कद, गोरा रंग, हाथ-पैर से मजबूत और खूबसूरत था। वह किशोरी के पलंग के पास आकर खड़ा हो गया और गौर से उसकी तरफ देखने लगा। उस पलंग के पास ही एक मोढा कपड़े से मढ़ा हुआ पड़ा था जिसे लौंडी उठा लाई और पलंग के पास रखकर पंखा झलने लगी। नौजवान ने बड़े गौर से किशोरी की नाड़ी देखी और फिर उस लौंडी की तरफ मुँह करके कहा, "गश आ गया है।"

लौंडी––कमजोरी के सबब से।

नौजवान––एक तो बीमार, दूसरे कई दिन से खाना-पीना सब छोड़ दिया, फिर ऐसी नौबत तो हुआ ही चाहे। अफसोस, यह मेरी बात नहीं मानती और मुफ्त में जान दे रही है।

लौंडी––इस जिद का भी कोई ठिकाना है!

नौजवान––खैर चाहे जो हो, मगर दो बात से तीसरी कभी हो ही नहीं सकती, या तो यह मेरी होकर रहेगी या इसी अवस्था में पड़ी-पड़ी यमलोक को सिधार जायगी। अच्छा, इसे होश में लाना चाहिए।

"जो हुक्म" कह कर लौंडी वहाँ से चली गई और एक आलमारी में से जो पलंग के सिरहाने की तरफ थी, कई बोतलें निकाल लाई, जिन्हें उस नौजवान के पास रख कर दह फिर पंखा झलने लगी।