पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/११५

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नौजवान ने अपनी जेब में से रूमाल निकाल कर एक बोतल के अर्क से उसे तर किया और दूसरी बोतल में से थोड़ा-सा अर्क हाथ में लेकर किशोरी के मुँह पर छींटा दिया। इसके बाद वही रूमाल नाक के पास ले जाकर कुछ देर तक सुँघाया। जब उससे कुछ काम न चला तो तीसरी बोतल से अर्क लेकर उसके मुँह पर छींटा दिया। थोड़ी देर में किशोरी का गश जाता रहा और उसने आँख खोल कर देखा मगर जैसे ही उस नौजवान पर निगाह पड़ी वह काँप उठी और दोनों हाथों से मुँह ढाँप कर बोली––

"हाय, न मालूम यह चाण्डाल अब क्यों मेरे पास आया है!"

नौजवान––मैं इसी वास्ते आया हूँ कि एक दफे तुमसे और पूछ लूँ।

किशोरी––एक दफे क्या सौ दफे कह चुकी कि तू मुझसे किसी तरह की उम्मीद न रख। मैं तेरी सूरत देखने की बनिस्बत मौत को हजार दर्जे अच्छा समझती हूँ!

नौजवान––क्या अभी तक तुझे इस बात की उम्मीद है कि इन्द्रजीतसिंह आकर तेरी मदद करेंगे और छुड़ा ले जायेंगे?

किशोरी––मुझे क्या पड़ी है कि इन सब बातों का तुझे जवाब दूँ? मैं तुझ पर बल्कि तेरे सात पुश्त पर थूकती हूँ। चाण्डाल, हट जा मेरे सामने से?

लौंडी––(नौजवान से) हुजूर, इस कमीनी औरत से क्यों बेइज्जती करा रहे हैं? इसमें क्या ऐसा हीरा जड़ा है?

नौजवान क्रोध के मारे काँपने लगा, आँखें लाल हो गईं, और दाँत पीसता हुआ मोढ़े पर से उठ खड़ा। दाहिने हाथ से वह छुरा निकाल लिया जो उसकी कमर में छिपा हुआ था और बाएँ हाथ से किशोरी का हाथ पकड़कर यह कहता हुआ उसकी तरफ झुका, "जब ऐसा ही है तो मैं इसी समय क्यों न तुझे यमलोक पहुँचाऊँ!"

उस नौजवान और किशोरी की यह अवस्था देख कर कमलिनी परेशान हो गई और सोचने लगी कि इस जल्दी में कौन सी तरकीब की जाय कि किशोरी की जान बचे। मगर वह कर ही क्या सकती थी? एक तो वह स्वयं चोरों की तरह कोठरियों में घूम रही थी, यदि किसी को जरा भी शक हो जाय तो उसकी जान पर आ बने। दूसरे, कोई ऐसा रास्ता भी नहीं दिखाई देता था जिधर से किशोरी के पास पहुँचकर उसकी सहायता करती। मगर इसमें कोई सन्देह नहीं कि कमलिनी बहुत होशियार चालाक और बुद्धिमान थी। उसने बहुत जल्द ही दिल में इस बात का फैसला कर लिया कि अब क्या करना चाहिए। एक खयाल बिजली की तरह उसके दिल में दौड़ गया मगर देखना चाहिए उससे कहाँ तक काम निकलता है।

जिस समय किशोरी को मारने के लिए वह नौजवान झुका और कमलिनी को मालूम हुआ कि अब उस बेचारी का काम तमाम होना चाहता है उसी समय कमलिनी ने अपनी कमर से तिलिस्मी खंजर निकाल लिया और जिस मोखे में देख रही थी उसके अन्दर डाल कर उसका कब्जा दबाया[१]। यह खंजर बिजली की तरह चमका और उस कोठरी में इतनी ज्यादा चमक या रोशनी पैदा हुई कि तुरत किशोरी और उस नौजवान की आँखें


  1. पाठकों को याद होगा कि कमलिनी की कमर में इस समय दो तिलिस्मी खंजर मौजूद हैं।