पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१३०

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हुए तो उस दालान में पहुँचे, जिसमें मायारानी का दरबार होता था। इस समय मायारानी उसी दालान में थी, मगर दरवार का सामान वहाँ कुछ न था, केवल अपनी बहिन और सखी सहेलियों के साथ बैठी दिल बहला रही थी। मायारानी पर निगाह पड़ते ही उनकी पोशाक और गम्भीर भाव ने बिहारीसिंह (तेजसिंह) को निश्चय करा दिया कि यहाँ की मालिक यही है।

हरनामसिंह और बिहारीसिंह को देखकर मायारानी को एक प्रकार की खुशी हुई और उसने बिहारीसिंह की तरफ देखकर पूछा, "कहो, क्या हाल है?"

बिहारीसिंह––रात अँधेरी है, पानी खूब बरस रहा है, काई फट गई, दुश्मन ने सिर निकाला, चोर ने घर देख लिया, भूख के मारे पेट फूल गया, तीन दिन से भूखा हूँ, कल का खाना अभी तक हजम नहीं हुआ। मुझ पर बड़े अन्धेर का पत्थर आ टूटा, बचाओ! बचाओ!

बिहारीसिंह के बेतुके जवाब से मायारानी घबरा गई, सोचने लगी कि इसको क्या हो गया जो बेमतलब की बात बक गया। आखिर हरनामसिंह की तरफ देख कर पूछा, "बिहारी क्या कह गया मेरी समझ में न आया!"

बिहारीसिंह––अहा हा, क्या बात है! तुमने मारा हाथ पसारा, छुरा लगाया खंजर खाया, शेर लड़ाया गीदड़ काया! राम लिखाया नहीं मिटाया, फाँस लगाया आप चुभाया, ताड़ खुजाया खून बहाया, समझ खिलाड़ी बूझ मेरे लल्लू, हा हा हा, भला समझो तो!

मायारानी और भी घबराई, बिहारीसिंह का मुँह देखने लगी। हरनामसिंह मायारानी के पास गया और धीरे से बोला, "इस समय मुझे दुख के साथ कहना पढ़ता है कि बेचारा बिहारीसिंह पागल हो गया है, मगर ऐसा पागल नहीं है कि हथकड़ी-बेड़ी की जरूरत पड़े क्योंकि किसी को दुःख नहीं देता, केवल बकता बहुत है और अपने-पराये का होश नहीं है, कभी बहुत अच्छी तरह भी बातें करता है। मालूम होता है कि वीरेन्द्र सिंह के किसी ऐयार ने धोखा देकर इसे कुछ खिला दिया।"

मायारानी––तुम्हारा और इसका साथ क्योंकर छूटा और क्या हुआ कुछ कहो तो हाल मालूम हो।

हरनामसिंह––पहले इनके लिए कुछ बन्दोबस्त कर दीजिये फिर सब हाल कहँगा वैद्यजी को बुलाकर जहाँ तक जल्द हो इनका इलाज कराना चाहिए!

बिहारीसिंह––यह काना-फुसकी अच्छी नहीं, मैं समझ गया कि तुम मेरी चुगली खा रहे हो। (चिल्लाकर) दोहाई रानी साहिबा की, इस कम्बख्त हरनामसिंह ने मुझे मार डाला, जहर खिलाकर मार डाला, मैं जिन्दा नहीं हूँ, मैं तो मरने बाद भूत बनकर यहाँ आया हूँ, तुम्हारी कसम खाकर कहता हूँ, मैं अब वह बिहारीसिंह नहीं हूँ, मैं कोई दसरा ही हँ। हाय-हाय, बड़ा गजब हुआ। या ईश्वर उन लोगों से तू ही समझियो जो भले आदमियों को पकड़ कर पिंजरे में बन्द किया करते हैं।

मायारानी––अफसोस, इस बेचारे की क्या दशा हो गई, मगर हरनामसिंह, यह तो तुम्हारा ही नाम लेता है, कहता है हरनामसिंह ने जहर खिला दिया!