पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१८७

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भाग्यशाली होगा जिसके तुम पाले पड़ोगी।

इसके जवाब में कमलिनी ने कुमार को एक हल्की चुटफी काटी और धीरे से कहा, "मुझे तो तुमसे बढ़ कर भाग्यशाली कोई दिखाई नहीं पड़ता मगर...!"

आह, कमलिनी की इस बात ने तो कुमार को फड़का दिया लेकिन इस 'मगर' के शब्द ने भी बड़ा अंधेर किया जिसका सबब हमारे मनचले पाठक स्वयं समझ जायँगे क्योंकि वे कमलिनी और कुँअर इन्द्रजीतसिंह की पहली बातें अभी भूले न होंगे, जो तालाब के बीच वाले उस मकान में हुई थीं जहाँ कमलिनी रहा करती थी।

कमलिनी––(देवीसिंह से) इस आदमी को जो बेहोश पड़ा है उठा के ले चलना चाहिए।

देवीसिंह––हाँ-हाँ, इसे मैं उठाकर ले चलूँगा।

इद्रजीतसिंह––शायद हम लोगों को फिर लौटना पड़े क्योंकि बाहर निकलने का रास्ता पीछे छोड़ आये हैं।

कमलिनी––हाँ, सुगम रास्ता तो यही था मगर अब मैं उधर न जाऊँगी। कौन ठिकाना हाथी वाले दरवाजे के उस तरफ दुश्मन लोग आ गये हों, क्योंकि कैदखाने की दीवार आप तोड़ ही चुके हैं और उधर वाली सुरंग का मुँह खुला रहने के कारण किसी का आना कठिन नहीं है।

इन्द्रजीतसिंह––तब दूसरी राह कौन-सी है? क्या उधर चलोगी जिधर से यह दुश्मन आया है?

कमलिनी––नहीं, उधर भी दुश्मनों का गुमान है, आइये मैं एक और ही राह से ले चलती हूँ।

आगे-आगे कमलिनी और उसके पीछे दोनों कुमार और ऐयार लोग रवाना हए।

यहाँ भी दोनों तरफ दीवारों पर सुन्दर तस्वीरें बनी हुई थीं। दस-बारह कदम आगे जाने के बाद बगल की दीवार पर एक छोटा-सा खुला हुआ दरवाजा था जिसे देख कर कमलिनी ने इन्द्रजीतसिंह से कहा, "यह आदमी इसी राह से आया होगा, क्योंकि अभी तक दरवाजा खुला हुआ है, मगर मैं दूसरी ही राह से चलूँगी जो जरा कठिन है।"

कुमार––मैं तो कहता हूँ कि इसी राह से चलो। दरवाजे पर दस-पाँच दुश्मन मिल ही जायँगे तो क्या होगा।

कमलिनी––खैर, तब चलिये।

सब कोई उस राह से बाहर हुए और कमलिनी ने उस दरवाजे को जो एक खटके के सहारे खुलता और बन्द होता था बन्द कर दिया। उस तरफ भी थोड़ी दूर सूरंग में ही जाना पड़ा। जब सुरंग का अन्त हुआ तो छोटी-छोटी सीढ़ियाँ ऊपर चढ़ने के लिए मिलीं। कमलिनी ने ऊपर की तरफ देखा और कहा, "यहाँ का दरवाजा तो बन्द है।" सबके आगे कमलिनी और फिर दोनों कुमार और ऐयार लोग ऊपर चढ़े। ये सीढ़ियाँ घूमती हुई ऊपर गई थीं, मालूम होता था कि किसी बुर्ज पर चढ़ रहे हैं।

जब सीढ़ियों का अन्त हुआ तो एक चक्कर पहिए की तरह बना हुआ दिखाई दिया जिसे कमलिनी ने चार-पाँच दफे घुमाया। खटके की आवाज के साथ पत्थर की