पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
229
 

उसमें ताला लगा हुआ है। यह अद्भुत मामला देख वह बहुत घबराई और डर के मारे उसका कलेजा धक-धक करने लगा। "हैं ऐसा क्यों हुआ! इस कमरे के अन्दर कौन आया जिसने दरवाजे में ताला लगा दिया? क्या बाहर पहरा नहीं पड़ता है! जरूर पड़ता होगा, फिर बिना इत्तिला किये इस कमरे के अन्दर आने का साहस किसको हुआ! अगर कोई आया है तो अवश्य अभी इस कमरे के अन्दर ही है क्योंकि दरवाजे में अभी तक ताला बन्द है। क्या यह काम धनपत का तो नहीं है! मगर इतना बड़ा हौसला वह नहीं कर सकती!"

ऐसे ऐसे सोच-विचार ने मायारानी को घबरा दिया। वह यहाँ तक डरी कि मुँह से आवाज निकलना मुश्किल हो गया और वह अपनी लौंडियों को पुकार भी न सकी। अन्त में वह लाचार होकर दरवाजे के पास ही बैठ गई और आँखों से आँसू की बूँदें टपकाने लगी। इतने ही में पैर की आहट जान पड़ी। मालूम हुआ कि कोई आदमी इस कमरे के अन्दर टहल रहा है। अब मायारानी और भी डरी और दरवाजे से कुछ हट कर दीवार के पास चिपक गई। साफ मालूम होता था कि कोई आदमी पैर पटकता हुआ कमरे में घूम रहा है।

मायारानी यद्यपि दीवार के साथ दुबकी हुई थी मगर पैर पटककर चलने वाला आदमी पल-पल में उसके पास होता जाता था। अन्त में एक मजबूत हाथ ने मायारानी की कलाई पकड़ ली। मायारानी चिल्ला उठी और इसके साथ ही उस आदमी ने जिसने कलाई पकड़ी थी मायारानी के गाल पर जोर से एक तमाचा मारा जिसकी तकलीफ वह बर्दाश्त न कर सकी और बेहोश होकर जमीन की ओर झुक गई।

उस आदमी ने अपनी बगल से चोर लालटेन निकाली जिसके आगे से ढक्कन हटाते ही कमरे में उजाला हो गया। इस समय यदि मायारानी होश में आ जाती तो भी उस आदमी को न पहिचान सकती क्योंकि वह अपने मुँह पर नकाब डाले हुए था। इस कमरे के चारों तरफ की दीवार आबनूस की लकड़ी से बनी हुई थी और उस पर उत्तम रीति से पालिश की हुई थी। पलंग के पायताने की तरफ दीवार में एक आदमी के घुसने लायक रास्ता हो गया था अर्थात् लकड़ी का तख्ता पल्ले की तरह घूमकर बगल में हट गया था। उस आदमी ने बेहोश मायारानी को धीरे से उठाकर उसकी चारपाई पर डाल दिया, इसके बाद कमरे के दरवाजे में जो ताला लगा हुआ था खोलकर अपने पास रखा और फिर पायताने की तरफ जाकर उसी दरार की राह दीवार के अन्दर घुस गया। उसके जाने के साथ ही लकड़ी का तख्ता भी बराबर हो गया।

घण्टे भर के बाद मायारानी होश में आई और आँख खोलकर देखने लगी मगर अभी तक कमरे में अँधेरा ही था।

हाथ से टटोलने और जाँचने से मालूम हो गया कि वह चारपाई पर पड़ी हुई है। डर के मारे देर तक चारपाई पर पड़ी रही, जब किसी के पैर की आहट न मालूम हुई तो जी कड़ा कर के उठी और दरवाजे के पास आई। कुण्डी खुली हुई थी, झट दरवाजा खोलकर कमरे के बाहर निकल आई। कई लौडियों को नंगी तलवार लिए दरवाजे पर पहरा देते पाया। उसने लौंडियों से पूछा, "कमरे के अन्दर कौन गया था।