धनपत––मैं टट्टी के पूरब तरफ पास ही वाली चमेली की झाड़ी तक पहुँच चुकी थी, किंतु जब पत्तों की खड़खड़ाहट सुनी तो रुक गई और जब चुटकी की आवाज कानों में पड़ी तो झट झाड़ी के अन्दर छिप गई और से अंगूर की टट्टी की तरफ ध्यान देकर देखने लगी। यद्यपि रात अँधेरी थी मगर मेरी आँखों ने चुटकी की आवाज के साथ ही दो आदमियों को टट्टी के अन्दर घुसते देख लिया।
मायारानी––चुटकी बजाने की आवाज कहाँ से आई थी?
धनपत––अंगूर की टट्टी के अन्दर से।
मायारानी––अच्छा तब क्या हुआ?
धनपत––मैं जमीन पर लेटकर धीरे-धीरे टट्टी की तरफ धसकन लगी और उसके बहुत पास पहुँच गई, अन्त में किसी की आवाज भी मेरे कान में पड़ी और मैं ध्यान देकर सुनने लगी। बातें धीरे-धीरे हो रही थीं मगर मैं बहुत पास पहुँच जाने के कारण साफ-साफ सुन सकती थी। सबसे पहले जिसकी आवाज मेरे कानों में पड़ी, वह यही कम्बख्त मालिन थी।
मायारानी––अच्छा, इसने क्या कहा?
धनपत––इसने इतना कहा कि 'मैं बड़ी देर से तुम लोगों की राह देख रही हूँ।' इसके जवाब में आए हुए दोनों आदमियों में से एक ने कहा, "बेशक तूने अपना वादा पूरा किया जिसका इनाम मैं इसी समय तुझे दूँगा, मगर आज किसी कारण से कमलिनी यहाँ न आ सकी, हम लोग केवल इतना ही कहने आए हैं कि कल आधी रात को आज ही की तरह फिर चोर दरवाजा खोल दीजियो, तुझे आज से ज्यादा इनाम दिया जायगा।" यह कम्बख्त 'बहुत अच्छा' कहकर चुप हो गई और फिर किसी के बातचीत की आवाज न आई। थोड़ी ही देर में उन दोनों आदमियों को अंगूर की टट्टी से निकलकर दक्खिन की तरफ जाते हुए मैंने देखा, उन्हीं के पीछे-पीछे यह मालिन भी चली गई और मैं चुपचाप उसी जगह पड़ी रही।
मायारानी––तुमने गुल मचाकर उन दोनों को गिरफ्तार क्यों न किया?
धनपत––मैं यह सोचकर चुप हो रही कि यदि दोनों आदमी गिरफ्तार हो जायेंगे तो कल रात को इस बाग में कमलिनी का आना न होगा।
मायारानी––ठीक है, तुमने बहुत ठीक सोचा, हाँ तब क्या हुआ?
धनपत––थोड़ी देर बाद मैं वहाँ से उठी और पीछे की तरफ लौटकर बाग में होशियारी के साथ टहलने लगी। आधी घड़ी न बीती थी कि यह मालिन लौटकर आपके डेरे की तरफ जाती हुई मिली। मैंने झट इसकी कलाई पकड़ ली और यह देखने के लिए दरवाजे की तरफ गई कि इसने दरवाजा बन्द कर दिया या नहीं। वहाँ पहुँचकर मैंने दरवाजा बन्द पाया, तब इस कमीनी को लिए हुए मैं आपके पास आई।
मायारानी––(मालिन की तरफ देखकर) क्यों री! तुझ पर जो कुछ दोष लगाया गया है वह सच है या झूठ?
मालिन ने मायारानी को कुछ भी जवाब न दिया। तब मायारानी ने पहरा देने वाली लौंडियों की तरफ देख के कहा, "आज रात को तुम लोगों की मदद से अगर