पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/५९

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ताली के छेद में से सभी को देख भी रही थी। ऊपर लिखी बातों ने उसका कलेजा दहला दिया, यहाँ तक कि वह अपनी जिन्दगी से नाउम्मीद हो गई और उसे निश्चय हो गया कि अब ये लोग मुझे गिरफ्तार कर लेंगे।

पाँचों आदमी इस फिक्र में लगे कि किस तरह दरवाजा खुले और कामिनी को गिरफ्तार कर लें। एक ने कहा, "दरवाजा तोड़ दो!" दूसरे ने हँस कर जवाब दिया, "शायद यह तुम्हारे किए हो सकेगा।"

उन पाँचों ने बहुत कुछ जोर कामिनी को पुकारा, दिलासा दिया, धमकी दी, जान बचा देने का वादा किया और समझाया मगर कुछ काम न चला। कामिनी बोली तक नहीं। आखिर उनमें से एक ने जो सबसे चालाक और होशियार था कहा, "अगर इस दरवाजे को हम पहले कभी बन्द देखते तो जरूर समझते कि किसी जानकार ने बाहर ताला लगाकर बन्द किया है, मगर अभी थोड़े ही दिन हुए इस कोठरी को मैंने खुला देखा था, इसमें किसी का असबाब पड़ा हुआ था। जो हो यह तो निश्चय हो गया कि कामिनी इस कोठरी के अन्दर घुस कर बैठी है, अब बाबाजी आवें तो इस कोठरी का दरवाजा खुले। (कुछ सोचकर) अब तो यही मुनासिब है कि हम लोगों में से एक आदमी जाय और बाकी चार आदमी बारी-बारी से यहाँ पहरा दें, जिससे कामिनी निकलकर भाग न जाय। आखिर इस कोठरी में कब तक छिप कर बैठी रहेगी या अपनी भूख-प्यास का क्या बन्दोबस्त करेगी?"

सभी ने इस राय को पसन्द किया। एक आदमी अपने मालिक को खबर करने चला गया, एक तहखाने में उसी जगह बैठा रहा और तीन आदमी बाहर खँडहर में निकल आए और इधर-उधर टहलने लगे। सवेरा हो गया और पूरब तरफ सूर्य की लालिमा दिखाई देने लगी।

बेचारी कामिनी की जान आफत में फँस गई, देखना चाहिए क्या होता है, मगर उसने निश्चय कर लिया कि भूख और प्यास से चाहे जान निकल जाय, मगर कोठरी के बाहर न निकलूँगी।

उस बेचारी को कोठरी के अन्दर घुस कर बैठे तीन दिन हो गए। भूख और प्यास से उस बेचारी की क्या अवस्था हो गई होगी, यह पाठक स्वयं समझ सकते हैं। लिखने की कोई आवश्यकता नहीं।

हम ऊपर लिख आए हैं कि उन पाँचों में से एक आदमी अपने मालिक को खबर करने चला गया और बाकी चार इसलिए रह गए कि बारी-बारी से पहरा दें, जिससे कामिनी निकलकर भाग न जाय।

तीसरे दिन इनमें से तीन आदमी आपस में बातें करते और घूमते-फिरते खँडहर के बाहर निकले और फाटक पर खड़े होकर बातें करने लगे।

एक––इसमें कोई शक नहीं कि हम लोगों का नसीब जाग गया।

दूसरा––नसीब जागा तो हम नहीं कह सकते, हाँ इतनी बात है कि रकम गहरी हाथ लगेगी।

तीसरा––मुँहमाँगा इनाम क्या हम नहीं पा सकते?