पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/९४

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दफे धोखा देना चाहा था मगर मैं कब इसके पंजे में आने वाली हूँ। हाँ, यह तो कहो कि इसने क्या काम करने के लिए कहा था?

भूतनाथ––इसने कहा था कि तू कमलिनी का सिर काट कर मेरे पास ले आ, यह काम तुझसे बखूबी हो सकेगा क्योंकि वह तुझ पर विश्वास करती है।

कमलिनी––(कुछ देर तक सोचकर) खैर, कोई हर्ज नहीं। पहले तो मुझे इसकी कोई विशेष फिक्र न थी, परन्तु अब इसके साथ चाल चले बिना काम नहीं निकलता। देखो तो, मैं इसे कैसा दुरुस्त करती हूँ और तुम्हारे कागजात भी इसके कब्जे से कैसे निकालती हूँ।

भूतनाथ––मगर इस काम में देर न करनी चाहिए।

कमलिनी––नहीं-नहीं, देर न होगी, क्योंकि कुँअर इन्द्रजीतसिंह को छुड़ाने के लिए भी मुझे इसी के मकान पर जाना पड़ेगा। बस, दोनों काम एक साथ ही निकल जायेंगे।

भूतनाथ––अच्छा, तो अब क्या करना चाहिए?

कमलिनी––(हाथ का इशारा करके) तुम इस झाड़ी में छिपे रहो, मैं इसे होश में लाकर कुछ बातचीत करूँगी। आज यह मुझे किसी तरह नहीं पहचान सकती।

भूतनाथ झाड़ी के अन्दर छिपा रहा। कमलिनी ने अपने बटुए में से लखलखे की डिबिया निकाली और सुँघाकर उस औरत को होश में लाई। मनोरमा जब होश में आई, उसने अपने सामने एक भयानक रूपवाली औरत को देखा। वह घबरा कर उठ बैठी और बोली––

मनोरमा––तुम कौन हो और मैं यहाँ क्योंकर आई?

कमलिनी––मैं जंगल की रहने वाली भिल्लिनी हूं। तुम्हें एक लम्बे कद का आदमी पीठ पर लादे लिये जाता था। मैं इस पहाड़ी के नीचे सूअर का शिकार कर रही थी। जब वह मेरे पास पहुँचा मैंने उसे ललकारा और पूछा कि पीठ पर क्या लादे लिये जाता है? जब उसने कुछ न बताया तो लाचार (नेजा दिखा कर) इसी जहरीले नेजे से उसे जख्मी किया। जब वह बेहोश होकर गिर पड़ा तब मैंने गठरी खोली, जब तुम्हारी सूरत नजर आई तो हाल जानने की इच्छा हुई। लाचार इस जगह उठा लाई और होश में लाने का उद्योग करने लगी। अब तुम्हीं बताओ कि वह आदमी कौन था और तुम्हें इस तरह क्यों लिये जाता था?

मनोरमा––मैं अपना हाल तुमसे जरूर कहूँगी, मगर पहले यह बताओ कि वह आदमी तुम्हारे इस जहरीले नेजे के असर से मर गया या जीता है?

कमलिनी––वह मर गया और मेरे साथी लोग उसे जला देने के लिए ले गए।

मनोरमा––(ऊँची साँस लेकर) अफसोस, यद्यपि उसने मेरे साथ बहुत बुरा बर्ताव किया तथापि उसकी मुहब्बत मेरे दिल से किसी तरह नहीं जा सकती, क्योंकि वह मेरा प्यारा पति था। अफसोस अफसोस, तुमने उसके हाथ से मुझे व्यर्थ छुड़ाया।

पाठक, झाड़ी के अन्दर छिपा हुआ भूतनाथ भी मनोरमा की बातें सुन रहा था। मनोरमा ने जो कुछ कमलिनी से कहा, न मालूम उसमें क्या तासीर थी कि सुनने के