पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/९५

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साथ ही भूतनाथ का कलेजा काँपने लगा और उसे चक्कर-सा आ गया। बहुत मुश्किल से उसने अपने को सम्हाला और कान लगाकर फिर दोनों की बातें सुनने लगा।

कमलिनी––(कुछ सोचकर) मैं केसे विश्वास करूँ कि तुमने जो कुछ कहा वह सच है?

मनोरमा––पहले यह सोचो कि मैं तुमसे झूठ क्यों बोलूँगी?

कमलिनी––इसके कई सबब हो सकते हैं। सब से भारी सबब यह है कि तुम्हारा भेद एक गैर के सामने खुल जायेगा जिससे तुम्हें कोई मतलब नहीं। मगर मुझे विश्वास नहीं होता कि जो आदमी तुम्हें इतना कष्ट दे और बेहोश करके गठरी में बाँध कर कहीं ले जाने का इरादा रक्खे, उसे तुम प्यार करो और अपना पति कहकर सम्बोधित करो।

मनोरमा––नहीं-नहीं, यों तो शक की कोई दवा नहीं। परन्तु मैं इतना अवश्य कहूँगी कि उस आदमी के बारे में मैंने जो कुछ कहा, वह सच है।

कमलिनी––खैर, ऐसा ही होगा, मुझे इससे कोई मतलब नहीं चाहे वह आदमी तुम्हारा पति हो अथवा नहीं, अब तो वह मर चुका, किसी तरह जी नहीं सकता। लेकिन यह बताओ कि अब तुम क्या करना चाहती हो और कहाँ जाने की इच्छा रखती हो?

मनोरमा––मुझे गयाजी का रास्ता बता दो। मेरे माँ-बाप उसी शहर में रहते हैं। अब मैं उन्हीं के पास जाऊँगी।

कमलिनी––अच्छा, पहाड़ी के नीचे चलो, मैं तुम्हें गयाजी का रास्ता बता देती हूँ। हाँ, मैं तुम्हारा नाम पूछना तो भूल ही गई।

मनोरमा––मेरा नाम इमामन है।

कमलिनी––(जोर से हँस कर) क्या ठगने के लिए मैं ही थी?

मनोरमा––(चौंक कर और कमलिनी को सिर से पैर तक खूब अच्छी तरह देख कर) मुझे तुम पर शक होता है।

कमलिनी––यह कोई ताज्जुब की बात नहीं, मगर शक होने ही से क्या हो सकता है? आज तक तुमने मुझे कभी नहीं देखा और न फिर देखोगी।

मनोरमा––तब मैं अवश्य ही कह सकती हूँ कि तुम कमलिनी हो!

कमलिनी––नहीं-नहीं, मैं कमलिनी नहीं हो सकती, हाँ कमलिनी को पहचानती जरूर हूँ, क्योंकि वह वीरेन्द्रसिंह और उनके खानदान की दोस्त है, इसलिए मेरी दुश्मन!

मनोरमा––अब मैं तुम्हारी बातों का विश्वास नहीं कर सकती।

कमलिनी––तो इसमें मेरा कोई भी हर्ज नहीं। (आहट पाकर और दाहिनी तरफ देख कर) लो देखो, अब तो मैं सच्ची हुई? वह कमलिनी आ रही है!

संयोग से उसी समय तारा भी आ पहुँची जो कमलिनी की सूरत में उसके कहे मुताबिक सब काम किया करती थी। कमलिनी ने गुप्त रीति से तारा को कुछ इशारा किया जिससे वह कमलिनी का मतलब समझ गई। कमलिनी रूपी तारा लपक कर उन