पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/९७

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मनोरमा––बेशक तुम सच्ची हो। मेरी भूल थी जो तुम पर शक करती थी।

कमलिनी––खैर, इस समय तो तुम्हारे ही सबब से मुझे भी कष्ट भोगना पड़ा।

मनोरमा––इसमें कोई सन्देह नहीं।

कमलिनी––तुम्हारा छूटना तो मुश्किल है मगर मैं किसी-न-किसी तरह धोखा देकर छूट ही जाऊँगी और तब कमलिनी से समझूँगी। अब बिना उसकी जान लिए मुझे चैन कहाँ?

मनोरमा––तुम्हारी भी तो वह दुश्मन है, फिर तुम्हें क्योंकर छोड़ देगी?

कमलिनी––मेरी-उसकी दुश्मनी भीतर-ही-भीतर की है, इसके अतिरिक्त एक और सबब ऐसा है कि जिससे मैं अवश्य छूट जाऊँगी। तब तुम्हारे छुड़ाने का भी उद्योग करूँगी।

मनोरमा––वह कौन-सा सबब है?

कमलिनी––सो मैं अभी नहीं कह सकती। तुम्हें वह स्वयं मालूम हो जायगा। (चारों तरफ देख कर) न मालूम वह कम्बख्त कहाँ गई!

मनोरमा––क्या तुम्हें भी नहीं मालूम?

कमलिनी––नहीं, मुझे जब होश आया मैंने अपने को इसी तरह बेबस पाया।

मनोरमा––खैर, कहीं भी हो, आवेगी ही। हाँ तुम्हें यदि अपने छूटने की उम्मीद है तो कब तक?

कमलिनी––उसके आने पर दो-चार बातें करने से ही मुझे छुट्टी मिल जायगी और मैं तुम्हें भी अवश्य छुड़ाऊँगी। हाँ, अकेली होने के कारण विलम्ब जो कुछ हो। यदि तुम्हारा कोई मददगार हो तो बताओ, ताकि छुट्टी मिलने पर मैं तुम्हारे हाल की उसे खबर दूँ।

मनोरमा––(कुछ सोचकर) यदि कष्ट उठाकर तुम मेरे घर तक जाओ और मेरी सखी को मेरा हाल कह सको, तो वह सहज ही में मुझे छुड़ा लेगी।

कमलिनी––इसमें तो कोई सन्देह नहीं कि मैं अवश्य छूट जाऊँगी। तुम अपने घर का पता और अपनी सखी का नाम बताओ। मैं जरूर उससे मिलकर तुम्हारा हाल कहूँगी और स्वयं भी जहाँ तक हो सकेगा, तुम्हें छुड़ाने के लिए उसका साथ दूँगी।

मनोरमा––यदि ऐसा करो तो मैं जन्म-भर तुम्हारा अहसान मानूँगी। जब उसके कान तक मेरा हाल पहुँच जायगा तो तुम्हारी मदद की आवश्यकता न रहेगी।

कमलिनी––खैर, अब पता और नाम बताने में विलम्ब न करो। कहीं ऐसा न हो कि कमलिनी आ जाय, तब कुछ न हो सकेगा।

मनोरमा––हाँ ठीक है-काशीजी में त्रिलोचनेश्वर महादेव के पास लाल रंग का मकान एक छोटे से बाग के अन्दर है। मछली के निशान की स्याह रंग की झण्डी दूर से ही दिखाई पड़ेगी। मेरी सखी का नाम 'नागर' है, समझ गईं?

कमलिनी––मैं खूब समझ गई, मगर उसे मेरी बात का विश्वास कैसे होगा?

मनोरमा––इसमें विश्वास की कोई जरूरत नहीं है। वह मुझ पर आफत आने का हाल सुनते ही बेचैन हो जायगी और किसी तरह न रुकेगी।