पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१००

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के दिल में क्या बात पैदा होती है। खैर, जो होगा देखा जाएगा, अव तुम विलम्ब न करो, वे राह देख रहे होंगे।

भूतनाथ की बातों का जवाब देने का तारा को मौका न मिला और वह बिना कुछ कहे भूतनाथ के साथ रवाना हुई। राजा गोपालसिंह बहुत दूर न थे। इसलिए आधी घड़ी से कम ही देर में तारा वहाँ पहुँच गई और उसने अपनी आँखों से गोपालसिंह, किशोरी, कामिनी और देवीसिंह को देखा। तारा के दिल में खुशी का दरिया जोश के साथ लहरें ले रहा था। निःसन्देह उसके दिल में इतनी ज्यादा खुशी थी कि उसके समाने की जगह अन्दर न थी और बहुतायत के कारण रोमांच द्वारा तारा के एक-एक रोंगटे से खुशी बाहर हो रही थी। तारा के दिल में तरह-तरह के खयाल पैदा हो रहे थे और वह अपने को बहुत सम्हाल रही थी। तिस पर भी राजा गोपालसिंह के पास पहुँचते ही वह उनके कदमों पर गिर पड़ी।

गोपालसिंह-(तारा को जल्दी से उठाकर) तारा, मैं जानता हूँ, तुम्हें मेरे छूटने की हद से ज्यादा खुशी हुई है, मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ खासकर इस सबब से कि तुमने कमलिनी का साथ बड़ी नेकनीयती और मुहब्बत के साथ दिया और कमलिनी के ही सबब से मेरी जान बची, नहीं तो मैं मर ही चुका था, बल्कि यों कहना चाहिए कि मुझे मरे हुए पांच वर्ष बीत चुके थे। (लम्बी सांस लेकर) ईश्वर की भी विचित्र माया है। अच्छा, अब जो मैं कहता हूँ, उसे सुनो। क्योंकि मैं यहाँ ज्यादा देर तक नहीं ठहर सकता।

तारा-(ताज्जुब के साथ) तो क्या आप अभी यहाँ से चले जायेंगे? मकान में न चलेंगे?

गोपालसिंह-नहीं, मुझे इतना समय नहीं। मैं बहुत जल्द कुँवर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह और कमलिनी के पास पहुँचना चाहता है।

तारासिंह-क्या वे लोग अभी निश्चिन्त नहीं हुए?

गोपालसिंह-हुए, मगर वैसे नहीं, जैसे होने चाहिए।

गोपालसिंह की बात सुनकर तारा गौर में पड़ गई और देर तक कुछ सोचती रही। इसके बाद उसने सिर उठाया और कहा, "अच्छा कहिये, क्या आज्ञा होती है? (किशोरी और कामिनी की तरफ इशारा करके) इनके छूटने की मुझे बहुत खुशी हुई, इनके लिए मुद्दत तक मुझे रोहतासगढ़ में छिपकर रहना पड़ा था, अब तो कुछ दिन तक यहाँ रहेंगी न?”

गोपालसिंह-हाँ, बेशक रहेंगी। इन्हीं दोनों को पहुँचाने के लिए मैं आया हूँ। इन दोनों को मैं तुम्हारे हवाले करता हूँ और ताकीद के साथ कहता हूँ कि कमलिनी के लौट आने तक इन्हें बड़ी खातिर के साथ रखना, देखो, किसी तरह की तकलीफ न होने पावे। आशा है कि कुँवर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह और कमलिनी को साथ लिए हुए मैं बहुत जल्द यहाँ आऊँगा।

तारा-मैं इन दोनों को अपनी जान से ज्यादा मानूँगी। क्या मजाल कि मेरी जान रहते इन्हें किसी तरह की तकलीफ हो।