पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/११०

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मायारानी इस गुफा को साधारण और मामूली समझे हुए थी, मगर ऐसा न था। थोड़ी दूर जाने के बाद पूरा अंधकार मिला, जिससे वह घबड़ा गई, मगर दारोगा के ढाढ़स देने से उसका कपड़ा पकड़े हुए धीरे-धीरे रवाना हुई। लगभग सौ कदम जाने के बाद दारोगा रुका और बाईं तरफ घूम कर चलने लगा। अब मायारानी पहले की बनि- स्बत ज्यादा डरी और उसने घबड़ाकर दारोगा से पूछा, “क्या हम लोग चाँदनी में न पहुँचेंगे? कही ऐसा न हो कि कोई दरिन्दा जानवर मिल जाये और हम लोगों को फाड़ खाये।”

दारोगा—(जोर से हँस कर) क्या इतने ही में तेरी हिम्मत ने जवाब दे दिया? तिलिस्म की रानी होकर इतना छोटा दिल, आश्चर्य है!

मायारानी―(अपने डरे हुए दिल को सम्हाल कर) नहीं-नहीं, मैं डरी और घबराई नहीं हूँ, हाँ भूख-प्यास और थकावट के कारण बेहाल हो रही हूँ इसी से मैंने पूछा कि यह गुफा जिसे सुरंग कहना चाहिए, किसी तरह समाप्त भी होगी या नहीं?

दारोगा―घवरा मत, अब हम लोग बहुत जल्द इस अँधेरे से निकल कर ऐसे दिलचस्प मैदान में पहुँचेंगे, जिसे देखकर तू बहुत ही खुश होगी।

मायारानी―इन्द्रदेव के मकान में जाने के लिए यही एक राह है या और भी कोई?

दारोगा―बस इस रास्ते के सिवाय और रास्ता नहीं है।

मायारानी―अगर ऐसा है तो मालूम होता है कि आपके इन्द्रदेव बहुत से दुश्मन रखते हैं जिनके डर से उन्हें इस तरह छिप कर रहना पड़ता है।

दारोगा—(हँसकर) नहीं-नहीं, ऐसा नहीं है, इन्द्रदेव इस योग्य हैं कि अपने दुश्मनों को बात-की-बात में बर्वाद कर दे। वह इस स्थान में जान कर नहीं रहता बल्कि मजबूर होकर उसे यहाँ रहना पड़ता है क्योंकि जिस तिलिस्म का वह दारोगा है, वह तिलिस्म भी इसी स्थान में है।

मायारानी–ठीक है, तो क्या इस तिलिस्म का कोई राजा नहीं है?

दारोगा―नहीं, जिस समय यह तिलिस्म तैयार हुआ था, उसी समय इसके मालिक ने इस बात का प्रबन्ध किया था कि उसके खानदान में जो कोई हो वह तिलिस्म का राजा नहीं बने वल्कि दारोगा की तरह रहे। उसी के खानदान में यह इन्द्रदेव है। इसे तिलिस्म की हिफाजत करने के सिवाय और किसी तरह का अधिकार तिलिस्म पर नहीं, मगर दौलत की इसे किसी तरह की कमी नहीं है।

मायारानी―अगर पुराने प्रबन्ध को तोड़कर वह तिलिस्मी चीजों पर अपना दख़ल जमावे तो उसे कौन रोक सकता है?

मोरोगा―रोकने वाला तो कोई नहीं है, मगर वह तिलिस्म का भेद कुछ भी नहीं जानता, न मालूम यह तिलिस्म इतना गुप्त किसलिए रखा गया है।