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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/११२

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झपेटे आ रहे थे। सामने की तरफ पहाड़ी की आधी ऊंचाई से झरना गिर रहा था, जिसका बिल्लौर की तरह साफ जल नीचे आकर बारीक और पेचीली नालियों का सा आनन्द दिखलाता हुआ रमने के खुशनुमा कोमल और सुन्दर फूल-पत्तों वाले पौधों को तरी पहुँचा रहा था। खुशनुमा और मीठी बोलियों से दिल लुभा लेने वाली छोटी-छोटी चिड़ियों की सुरीली आवाजों में दबी हुई रसीले फूलों पर घूम-घूमकर बलाएँ लेते हुए मस्त भौंरों के परों की आवाज कमजोर उदास और मुरझाए दिल को ताकत और खुशी देने के साथ चैतन्य कर रही थी। इस स्थान के आधे हिस्से पर इस समय अपना दखल जमाए हुए सूर्य भगवान की कृपा ने धूप-छाँह की हुबाबी चादर इस ढंग से विछा रखी थी कि तरह-तरह की चिन्ताओं और खटकों से विकल मायारानी कोलाचार होकर मस्ती और मदहोशी के कारण थोड़ी देर के लिए अपने को भुला देना पड़ा और जब वह कुछ होश में आई तो सोचने लगी कि ऐसे अनूठे स्थान का अपूर्व आनन्द लेने वाला भी कोई यहाँ है या नहीं। इस विचार के साथ ही दाहिनी तरफ पहाड़ी पर बने हुए एक खुशनुमा बँगले पर उसकी निगाह जा पड़ी मगर उसे अच्छी तरह देखने भी न पाई थी कि दारोगा साहब हँस कर बोल उठे, "अब यहाँ कब तक खड़ी रहोगी, चलो आगे बढ़ो!"

जिस जगह मायारानी खड़ी थी उसकी ऊँचाई जमीन से लगभग बीस-पचीस गज के होगी। नीचे उतरने के लिए छोटी-छोटी सीढ़ियाँ बनी हई थीं जिन पर पहले दारोगा ने अपना मनहूस (अमंगल) कदम रखा और उसके पीछे-पीछे मायारानी रवाना ये दोनों उस खुशनुमा जमीन की कुदरती क्यारियों पर घूमते हुए उस पहाड़ी के नीचे पहँचे, जिस पर वह खूबसूरत बंगला बना हुआ था और उसी समय दो आदमियो को पहाड़ी से नीचे उतरते हुए देखा। बान-की-बात में ये दोनों आदमी दारोगा के पास आ पहँचे और दण्ड-प्रणाम के बाद बोले, "इन्द्रदेवजी ने आपको दूर ही से देखकर पहचान लिया, मगर मायारानी को न पहचान सके जो इस समय आपके साथ हैं।"

यह जानकर मायारानी को आश्चर्य हुआ कि यहाँ का हर एक आदमी उसे अच्छी तरह जानता और पहचानता है मगर इस विषय में कुछ पूछने का मौका न समझ कर वह चुप हो रही। बाबाजी ने दोनों ऐयारों से पूछा, "कहो कुशल तो है? इन्द्रदेव अच्छे हैं?"

एक-जी हाँ, बहुत अच्छे हैं। मगर यह तो कहिये आपने नाक पर यह पट्टी क्यों बांधी हुई है?

दारोगा-इसका हाल इन्द्रदेव के सामने कहूँगा, उसी समय तुम भी सुन लेना। चलो जल्द चलें, भूख-प्यास और थकावट से जी बेचैन हो रहा है।

ये चारों आदमी पहाड़ी के ऊपर चढ़ने लगे। यद्यपि इन सभी को बहुत ऊँचे नहीं चढ़ना था परन्तु मायारानी बहुत थकी और सुस्त हो रही थी। इसलिए बड़ी कठिनाई के साथ चढ़ी और ऊपर पहुँचने तक मामूली से बहुत ज्यादा देर लगी। ऊपर पहुँच कर मायारानी ने देखा कि वह बँगला छोटा और साधारण नहीं है बल्कि बहुत बड़ा और अच्छे ढंग का बना हुआ है मगर यहाँ पर इस मकान की बनावट तथा उसके सुन्दर-सुन्दर