पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/११३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
112
 


कमरों की सजावट का हाल न लिखकर मतलब की बातें लिखना उचित जान पड़ता है।

उस समय इन्द्रदेव अगवानी के लिए स्वयं बाहर निकल आया जब ये दोनों आदमी उस कमरे के पास पहुंचे, जिसमें वह रहता था। वह इन दोनों से बड़े तपाक से मिला और खातिर के साथ अन्दर ले जाकर बैठाया।

इन्द्रदेव-(दारोगा से) आपके और मायारानी के कष्ट करने का सबब पूछने के पहले मैं जानना चाहता हूँ कि आपने नाक पर पट्टी क्यों बाँध रखी है?

दारोगा-तुमसे विदा होकर मैंने जो कुछ तकलीफें उठाई हैं यह उसी का नमूना है। जब मैं जरा दम लेने के बाद अपना किस्सा तुमसे कहूँगा, तब सब हाल मालूम हो जायगा, इस समय भूख-प्यास और थकावट से जी बेचैन हो रहा है।

दारोगा का जवाब सुनकर इन्द्रदेव चुप हो रहा और फिर कुछ बातचीत न हुई। दारोगा और मायारानी के खाने-पीने का उत्तम प्रबन्ध कर दिया गया और उन दोनों ने कई घण्टे तक आराम करके अपनी थकावट दूर की। जब संध्या होने में थोड़ी देर बाकी थी तव इन्द्रदेव स्वयं उस कमरे में आया जिसमें दारोगा का डेरा पड़ा हुआ था। वह कमरा इन्द्रदेव के कमरे के बगल ही में था और उसमें जाने के लिए केवल एक मामूली दरवाजा था। उस समय मायारानी दारोगा के पास बैठी अपना दुखड़ा रो रही थी। इन्द्रदेव के आते ही वह चुप हो गई और बाबाजी ने खातिर के साथ इन्द्रदेव को अपनी बगल में बैठाया।

इन्द्रदेव-मैं समझता हूँ कि इस समय आप अपना हाल बखूबी कह सकेंगे, जिसके सुनने के लिए मेरा जी बेचैन हो रहा है।

दारोगा-वह कहने के लिए इस समय मैं स्वयं ही तुम्हारे पास आने वाला था, अच्छा हुआ कि तुम आ गये।

दारोगा ने अपना और मायारानी का हाल जो कुछ हम ऊपर लिख आये हैं, इन्द्रदेव से पूरा-पूरा बयान किया। इन्द्रदेव चुपचाप सुनता रहा, पर अन्त में जब नागर द्वारा बाबाजी की नाक काटने का हाल सुना तो उसे यकायक क्रोध चढ़ आया। उसका चेहरा लाल हो गया, होठ हिलने लगे, और वह बिना कुछ कहे बाबाजी के पास से उठ कर चला गया। यह हाल देखकर मायारानी को ताज्जुब मालूम हुआ और उसने दारोगा से पूछा, "क्या आप कह सकते हैं कि इन्द्रदेव आपकी बातों का कोई जवाब दिये बिना ही क्यों चला गया?"

दारोगा-मालूम होता है कि मेरा हाल सुनकर उसे हद से ज्यादा क्रोध चढ़ आया और वह कोई कार्रवाई करने के लिए चला गया है।

मायारानी-इन्द्रदेव नागर को जानता है?

दारोगा-बहुत अच्छी तरह, बल्कि नागर का जितना भेद इन्द्रदेव को मालूम है उतना तुमको भी मालूम न होगा।

मायारानी-सो कैसे?

दारोगा—जिस जमाने में नागर रण्डियों की तरह बाजार में बैठती थी और मोतीजान के नाम से मशहूर थी उस जमाने में इन्द्रदेव भी कभी-कभी उसके पास भेष बदल