पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/११४

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कर गाना सुनने की नीयत से जाया करता था और उसकी हर एक बात की इसे खबर थी, मगर इन्द्रदेव का ठीक-ठीक हाल बहुत दिनों तक सोहबत करने पर भी नागर को मालूम न हुआ, वह इन्द्रदेव को केवल एक सरदार और रुपये वाला ही जानती थी।

आधे घण्टे तक इसी किस्म की बातें होती रही और इसके बाद इन्द्रदेव के ऐयार सूर्यसिंह ने कमरे के अन्दर आकर कहा, "इन्द्रदेवजी आपको बुलाते हैं, आप अकेले जाइये और नजरबाग में मिलिये जहाँ वह भी अकेले टहल रहे हैं।"

इस सन्देश को सुनकर दारोगा उठ खड़ा हुआ और मायारानी को अपने कमरे में जाने के लिए कह इन्द्रदेव के पास चला गया।

इस मकान के पीछे की तरफ एक छोटा-सा नजरबाग था जो अपनी खुशनुमा क्यारियों और गुलबूटों की बदौलत बहुत ही भला मालूम पड़ता था। जब दारोगा वहाँ पहुँचा तो उसने इन्द्रदेव को उसी जगह टहलते हुए पाया।

इन्द्रदेव-भाई साहब, आज आपकी जुबान से मैंने वह बात सुनी है जिसके सुनने की कदापि आशा न थी।

दारोगा--बेशक नागर की बदमाशी का हाल सुनकर आपको बहुत ही रंज हुआ होगा।

इन्द्रदेव-नहीं, मेरा इशारा नागर की तरफ नहीं है। इसमें तो कोई सन्देह नहीं नागर ने आपके साथ जो किया बहुत बुरा किया और मैं उसे गिरफ्तार कर लेने के लिए एक ऐयार और कई सिपाही रवाना भी कर चुका हूँ मगर मैं उन बातों की तरफ इशारा कर रहा हूँ जो राजा गोपालसिंह से सम्बन्ध रखती हैं। मुझे इस बात का गुमान भी न था कि राजा गोपालसिंह अभी तक जीते हैं! मुझे स्वप्न में भी इस बात का ध्यान नहीं आ सकता था कि मायारानी वास्तव में गोपालसिंह की स्त्री नहीं है और आपकी कपा से लक्ष्मीदेवी की गद्दी पर जा बैठी है! ओफ ओह, दुनिया भी अजब चीज है, और उसमें विहार करने वाले दुनियादार भी कैसे-कैसे मनसूबे गाँठते हैं?

इन्द्रदेव की बातें सुनकर दारोगा चौक पड़ा और उसे विश्वास हो गया कि हमारी आशालता में अब कोई नये ढंग का फूल खिलना चाहता है। उसने घबरा कर इन्द्रदेव की तरफ देखा जिसका जमीन की तरफ झुका हुआ चेहरा इस समय बहुत ही उदास हो रहा था।

दारोगा--बेशक मायारानी को लक्ष्मीदेवी बनाने में मेरा कसूर था और मगर राजा गोपालसिंह के बारे मैं निर्दोष हूँ। मुझे इस बात का गुमान भी न था कि राजा साहब को माया रानी ने कैद कर रक्खा है, मैं वास्तव में उन्हें मरा हुआ समझता था।

इन्द्रदेव--(इस ढंग से जैसे दारोगा की बात उसने सुनी ही नहीं, क्या आप कह सकते हैं कि राजा गोपालसिंह ने आपके साथ कोई बुराई की थी?

दारोगा- नहीं-नहीं, उस बेचारे ने मेरे साथ कोई बुराई नहीं की।

इन्द्रदेव-क्या आप कह सकते हैं कि गोपालसिंह के बाद आप विशेष धनी हो गए हैं?

दारोगा नहीं।