इच्छा प्रकट हुई, और उसने डबडबाई हुई आँखों से तारा की तरफ देखकर गद्गद स्वर से कहा―
किशोरी―बहिन, तुम्हें आश्चर्य होगा कि यदि मैं पिता को देखने की इच्छा प्रकट करूँ, मगर लाचार हूँ, जी नहीं मानता।
तारा―हाँ, यदि कोई दूसरी बेकसूर लड़की ऐसे पिता से मिलने की इच्छा प्रकट करती तो अवश्य आश्चर्य की जगह थी, मगर तेरे लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि मैं तेरे स्वभाव को अच्छी तरह जानती हूँ, परन्तु बहिन किशोरी, मुझे निश्चय है कि तू अपने पिता को देखकर प्रसन्न न होगी, बल्कि तुझे दुःख होगा, वह तुझे देखते ही वेबस रहने पर भी हजारों गालियाँ देगा, और कच्चा ही खा जाने के लिए तैयार हो जायगा।
किशोरी―तुम्हारा कहना ठीक है, परन्तु मैं माता-पिता की गाली को आशीर्वाद समझती हूँ, यदि वे कुछ कहेंगे तो कोई हर्ज नहीं, और मैं ज्यादा देर तक उनके पास ठहरूँगी भी नहीं, केवल एक नजर देखकर पिछले पैर लौट आऊँगी। मुझे विश्वास है कि दुश्मन लोग जो तालाब के बाहर खड़े हैं, इस समय मेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकते और यदि तुम्हारी कृपा होगी तो मैं ऐसे समय में भी बेफिकी के साथ अपने पिता को एक नजर देख सकूँगी।
तारा―खैर, जब ऐसा कहती हो तो लाचार मैं तुम्हें कैदखाने में ले चलने के लिए तैयार हूँ, चलकर अपने पिता को देख लो।
कामिनी—क्या मैं भी तुम लोगों के साथ चल सकती हूँ?
तारा―हाँ-हाँ, कोई हर्ज नहीं, तू भी चल कर अपनी रानी माधवी को एक नजर देख ले।
लौंडियों को बुलाकर हौज के विषय में तथा और भी किसी विषय में समझा-बुझा कर किशोरी और कामिनी को साथ लिए हुए तारा वहाँ से रवाना हुई और एक कोठरी में से लालटेन तथा खंजर ले दूसरी कोठरी में गई जिसमें किसी तरह का सामान न था। इस कोठरी में मजबूत ताला लगा हुआ था जो खोला गया और तीनों कोठरी के अन्दर गई। कोठरी बहुत छोटी थी और इस योग्य न थी कि वहाँ का कुछ हाल लिखा जाय। इस कोठरी के नीचे एक तहखाना था जिसमें जाने के लिए छोटा-सा मगर लोहे का खूब मजबूत दरवाजा जमीन में दिखाई दे रहा था। तारा ने लालटेन जमीन पर रख कर कमर में से ताली निकाली और तहखाने का दरवाजा खोला। नीचे बिल्कुल अंधकार था इसलिए तारा ने जब लालटेन उठाकर दिखाया तो छोटी-छोटी सीढ़ियाँ नजर पड़ी। किशोरी, कामिनी को पीछे-पीछे आने का इशारा करके तारा तहखाने में उतर गई मगर जब नीचे पहुँची तो यकायक चौंक कर ताज्जुब भरी निगाहों के साथ इस तरह चारों तरफ देखने लगी जैसे किसी की कोई अनमोल अलभ्य और अनुठी चीज यकायक सामने से गुम हो जाय और वह आश्चर्य से चारों तरफ देखने लगे।
यह तहखाना दस हाथ चौड़ा और पन्द्रह हाथ लम्बा था। इसकी अवस्था कहे देती थी कि यह जगह केवल हथकड़ी-बेड़ी से सुशोभित कैदियों की खातिरदारी के लिए