पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
130


ही बनाई गई है। विना चौखट-दरवाजे की छोटी-छोटी दस कोठरियां जो एक के साथ दूसरी लगी हुई थीं एक तरफ और उसी ढंग की उतनी ही कोठरियाँ उसके सामने दूसरी तरफ बनी हुई थीं। इतनी कम जमीन में बीस कोठरियों के ध्यान ही से आप समझ सकते हैं कि कैदियों का गुजारा किस तकलीफ से होता होगा।

दोनों तरफ तो कोठरियों की पंक्ति थी और बीच में थोड़ी-सी जगह इस योग्य वची हुई थी कि यदि कैदियों को रोटी-पानी पहुँचाने या देखने के लिए कोई जाय तो अपना काम बखूबी कर सके। इसी बची हुई जमीन के एक सिरे पर तहखाने में आने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। जिस राह से इस समय तारा, किशोरी और कामिनी आई थीं उसी के सामने अर्थात् दूसरे सिरे पर लोहे का एक छोटा मजबूत दरवाजा था जो इस समय खुला था और एक बड़ा सा खुला हुआ ताला उसके पास ही जमीन पर पड़ा हुआ था जो बेशक उसी दरवाजे में उस समय लगा होगा जब वह दरवाजा बन्द होगा। इसी दरवाजे को खुला हुआ और अपने कैदियों को न देखकर तारा चौंकी और घबरा कर चारों तरफ देखने लगी थी।

तारा-बड़े आश्चर्य की बात है कि हथकड़ी-बेड़ी से जकड़े हुए कैदी क्योंकर निकल गये और इस दरवाजे का ताला किसने खोला। निःसन्देह या तो हमारे नौकरों में से किसी ने कैदियों की मदद की या कैदियों का कोई मित्र इस जगह आ पहुंचा। मगर नहीं, इस दरवाजे को दूसरी तरफ से कोई खोल नहीं सकता, परन्तु"

किशोरी-क्या यह किसी सुरंग का दरवाजा है?

तारा--समय पड़ने पर आने-जाने के लिए यह एक सुरंग है जो यहाँ से बहुत दूर जाकर निकली है। वर्षों हो गये कि इस सुरंग से कोई काम नहीं लिया गया, केवल उस दिन यह सुरंग खोली गई थी जिस दिन तुम्हारे पिता गिरफ्तार हुए थे क्योंकि वे इसी सुरंग की राह से यहां लाए गये थे।

कामिनी-मैं समझती हूँ कि इस सुरंग के दरवाजे को बन्द करने में जल्दी करनी चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि इस राह से दुश्मन लोग आ पहुँचें और हमारा बनाबनाया खेल बिगड़ जाय।

किशोरी—मेरी तो यह राय है कि इस सुरंग के अन्दर चलकर देखना चाहिए, शायद कैदियों का कुछ...

तारा-मेरी भी यही राय है, मगर इस तरह खाली हाथ सुरंग के अन्दर जाना उचित न होगा, शायद दुश्मनों का सामना हो जाय, अच्छा ठहरो मैं तिलिस्मी नेजा लेकर आती हूँ।

इतना कह कर तारा तिलिस्मी नेजा लेने के लिए चली मगर अफसोस उसने बड़ी भारी भूल की कि सुरंग के दरवाजे को बिना बन्द किए ही चली आई और इसके लिए उसे बहुत रंज उठाना पड़ा अर्थात् जब वह तिलिस्मी नेजा लेकर लौटी और तहखाने में पहुंची तो वहां किशोरी और कामिनी को न पाया, निश्चय हो गया कि उसी सुरंग की राह से जिसका दरवाजा खुला हुआ था दुश्मन आये और किशोरी तथा कामिनी को पकड़ के ले गये।