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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/१३८

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इस तालाब के बीच वाले तिलिस्मी मकान में कमलिनी दस लौंडियों के साथ रहती थी। नौकर और सिपाही भी उसके साथ बहुत थे मगर उनके रहने के लिए स्थान इस मकान में नहीं था, वे लोग काम-काज किया करते थे और समय पड़ने पर जान देने के लिए इकट्ठे हो जाते थे, मगर कमलिनी और तारा को छोड़ के कोई यह भी नहीं जानता था कि वे लोग कहाँ रहते हैं और क्या करते हैं। उन सिपाहियों में से कई तो मायारानी के कैदी हो गये थे और जो दस-बारह बचे थे सो इधर-उधर घूम-फिरकर कमलिनी का काम कर रहे थे। उन्हीं बचे हुए सिपाहियों में से चार-पांच सिपाही इस समय मकान में मौजूद थे जो किसी काम के सम्बन्ध में तारा के पास आये थे और दुश्मनों का हंगामा देखकर बाहर न जा सके थे। कमलिनी की लौंडियाँ जितनी थीं, वे सब जमानिया से कमलिनी के साथ उस समय आई थी जब मायारानी से लड़ कर कमलिनी अलग हो गई थी। इन लौंडियों में के एक लौंडी, जिसका नाम भगवानी था, बड़ी ही शैतान और दिल की खोटी थी। यद्यपि वह जाहिर में अपने को बहुत ही बनाये हुए रहती थी और बात-बात में खैरखाही जताती थी, मगर वास्तव में वह ऐसी काली नागिन थी जिसके काटे का कोई मन्त्र ही न था। उसे रुपये की लालच हद से ज्यादा थी। मगर इतने दोष पहने पर भी वह अपनी चालाकी से अपने मालिक तथा तारा को खुश रखती थी और उन दोनों के आगे अपने अवगुण जाहिर नहीं होने देती थी। यही लौंडी प्रायः कैदियों को खाना-पानी भी पहुँचाया करती थी।

कमलिनी के कैदखाने को पहले माधवी और शिवदत्त ने आबाद किया था और उसके बाद मनोरमा इस कैदखाने में आई थी। मायारानी की सखी होने के कारण मनोरमा भगवानी को बखूबी जानती थी और इसी तरह भगवानी भी उसे अच्छी तरह पहचानती थी। खाना-पानी पहुँचाने के लिए जब भगवानी कैदखाने में जाती थी तो मनोरमा उसे अपनी लच्छेदार बातों में घड़ियों उलझा कर भविष्य के लिए सब्जबाग दिखाती और तरह-तरह की उम्मीदों से ललचाया करती यहाँ तक कि उसे तीन लाख रुपये की लालच दिखाकर उसने अपनी, माधवी और शिवदत्त की मदद पर राजी कर लिया। माधवी दवा-इलाज की बदौलत यहाँ आकर तन्दुरुस्त हो गई थी।

भगवानी इस बात पर राजी हो गई कि मौका मिलने पर कैदियों की मदद करे और जिस तरह हो कैदियों को तहखाने के बाहर निकाल दे। भगवानी ने माधवी, शिवदत्त और मनोरमा से कहा कि तुम लोगों को छुड़ाने के लिए मुझे बहुत कुछ उद्योग करना पड़ेगा और तुम्हारे नौकरों तथा सिपाहियों से मिलने और उनसे कुछ काम लेने की आवश्यकता पड़ेगी, इसलिए उचित होगा कि तुम लोग मुझे एक परवाना लिख दो जिसमें तुम लोगों के आदमी मुझे तुम्हारा मददगार समझें और जो कुछ मैं कहूँ करें और खर्च के लिए आवश्यकतानुसार मुझे दिया भी करें। आखिर तीनों कैदियों ने भगवानी की बात मंजूर कर ली। भगवानी मौका पाकर कलम दवात और कागज छिपाकर तहखाने