बलभद्रसिंह-हां, मेरी राय में तो ऐसा ही होना चाहिए।
कमलिनी-क्या इसे कुछ भी सजा न दी जायगी? इसका तो इसी समय सिर उतार लेना चाहिए।
बलभद्रसिंह—(ताज्जुब से कमलिनी की तरफ देख के) तुम ऐसा कहती हो? मुझे आश्चर्य होता है। शायद गम ने तुम्हारी अक्ल में फर्क डाल दिया है। इसे मार डालने से क्या हमारा बदला पूरा हो जायगा?
कमलिनी ने शरमा कर सिर नीचा कर लिया और तेजसिंह का इशारा पाकर भैरोंसिंह और देवीसिंह ने भूतनाथ को तालाब के बाहर पहुंचा दिया। तारासिंह और श्यामसुन्दरसिंह आश्चर्य से सभी का मुँह देख रहे थे कि यह क्या मामला है, क्योंकि इधर जो कुछ गुजरा था उसका हाल उन्हें भी मालूम न था।
ऊपर लिखे कामों से छुट्टी पाकर तेजसिंह ने तारासिंह को एक किनारे ले जाकर वह हाल सुनाया जो इधर गुजर चुका था और फिर अपने ठिकाने आ बैठे। इसके बाद कमलिनी ने बलभद्रसिंह से कहा-'मेरा जी इस बात को जानने के लिए बेचैन हो रहा है कि इतने दिनों तक आप कहाँ रहे, किस स्थान में रहे और क्या करते रहे? आप पर क्या-क्या मुसीबतें आयीं और हम लोगों का हाल जानकर भी आपने इतने दिनों तक हम लोगों से मुलाकात क्यों नहीं की? क्या आप नहीं जानते थे कि हमारी लड़कियाँ कहाँ और किस मुसीबत में पड़ी हुई हैं?"
बलभद्रसिंह- इन सब बातों का जवाब मिल जायगा, जरा सब्र करो और घबराओ मत। पहले उन चिट्ठियों को सुन जाओ, फिर इसके बाद जो कुछ तुम्हें पूछना हो पूछना और मुझे भी जो कुछ तुम्हारे विषय में मालूम नहीं है, पूछूँगा। (तेजसिंह से) यदि इस समय कोई आवश्यक काम न हो तो आप उन चिट्ठियों को पढ़िए या पढ़ने के लिए किसी को दीजिए!
तेजसिंह-नहीं-नहीं, (कागज के मुठ्ठे की तरफ देख के) इन चिट्ठियों को मैं स्वयं पढूंगा और इस समय हम लोग सब कामों से निश्चिन्त भी हैं। हाँ, तारासिंह को यदि कुछ
तारा-नहीं, मुझे कोई काम नहीं है। केवल भगवनिया के विषय में पूछना है कि इसके साथ क्या सलूक किया जाय?
तेजसिंह-इसका जवाब कमलिनी के सिवाय और कोई नहीं दे सकता। यह कह उन्होंने कमलिनी की तरफ देखा।
कमलिनी-(भैरोंसिंह से) आपको यहाँ का सब हाल मालूम हो चुका है। इसलिए आप ही तहखाने तक जाने की तकलीफ उठाइये।
"बहुत अच्छा" कहकर भैरोंसिंह उठ खड़ा हुआ और भगवानी की कलाई पकड़े हुए बाहर चला गया। कमलिनी ने श्यामसुन्दरसिंह से कहा, "अब तुम्हें भी यहाँ न ठहरना चाहिए, बस तुरन्त चले जाओ और हमारे आदमियों को जो दुश्मन के सताने से इधर-उधर भाग गये हैं, जहाँ तक हो सके ढूंढो तथा हमारे यहाँ आ जाने की खुशखबरी सुनाओ। बस, चले ही जाओ, यहां अटकने की कोई जरूरत नहीं।"