पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/२१७

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नीचे पांच-सौ सवार चांदी-सोने के काम की पालकियों को बीच में लिए हुए 'डहना' पहाड़ी की तरफ जाते हुए दिखाई दिए और पहर भर के बाद वहाँ जा पहुंचे, जहाँ तेजसिंह, किशोरी इत्यादि को एक गुफा के अन्दर बैठा कर ऐयारों तथा बलभद्रसिंह को साथ लिए ज्योतिषीजी का इन्तजार कर रहे थे। तेजसिंह तथा ऐयार लोग खुशी-खुशी ज्योतिषीजी से मिले। कमला की पालकी उस गुफा के पास पहँचाई गई जिसमें किशोरी और कमलिनी इत्यादि थीं और कहार सब वहाँ से अलग कर दिए गए।

वह गुफा जिसमें कमलिनी और किशोरी इत्यादि थीं, ऐसी तंग न थी कि उनको किसी तरह की तकलीफ होती, बल्कि वह एक आड़ की जगह में और बहुत ही लम्बीचौड़ी थी और उसमें चाँदना बखूबी पहुँचा रहा था। तारासिंह की जुबानी जब किशोरी ने यह सुना कि कमला भी आई है तो उससे मिलने के लिए वेचैन हो गई और जब तक वह पालकी के अन्दर से निकले तब तक किशोरी स्वयं खोह के बाहर निकल आई। कमला ने किशोरी को देखा तो बड़े जोर और मुहब्बत से लपक कर किशोरी के गले से लिपट गई और किशोरी ने भी बड़े प्रेम से उसे दबा लिया तथा दोनों की आँखों से आँसुओं की बूंदें टपाटप गिरने लगीं। कमलिनी ने दोनों को अलग किया और कमला को अपने गले से लगा लिया। इसके बाद कामिनी, लाड़िली और तारा भी बारी-बारी कमला से मिलीं। उस समय सभी के चेहरे खुशी से दमक रहे थे और सभी के दिल की कली खिली जाती थी। किशोरी, कामिनी, तारा और लाड़िली को मालूम हो चुका था कमला, भूतनाथ की लड़की है और वे सब भूतनाथ से बहुत रंज थीं। मगर कमला की तरफ से किसी का दिल मैला न था, बल्कि कमला को देखने के साथ ही उन पाँचों के दिल में ऐसी मुहब्बत पैदा हो गई, जैसी सच्चे प्रेमियों के दिल में हुआ करती है। मगर अफसोस कि अभी तक कमला को इस बात की खबर नहीं हुई कि भूतनाथ उसका बाप है और उसने बड़े-बड़े कसूर किए हैं।

किशोरी, कमलिनी और कमला इत्यादि की मुहब्बत भरी बातचीत कदापि पूरी न होती, यदि तेजसिंह वहाँ पहुँच कर यह न कहते कि "अब तुम लोगों को यहाँ से बहुत जल्दी चल देना चाहिए जिससे सूर्यास्त के पहले ही रोहतासगढ़ पहुँच जाएँ।' पालकियां गुफा के आगे रखी गईं। कमलिनी, किशोरी, कामिनी, कमला, लाड़िली और तारा उन पर सवार हुईं। कहारों को आकर पालकी उठाने का हुक्म दिया गया और खुशी-खुशी सब कोई रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए।

सूर्य अस्त होने के पहले ही सवारी रोहतासगढ़ किले के अन्दर दाखिल हो गई। किले का जनाना भाग आज फिर रौनक हो गया। मगर महल में पैर रखते ही एक दफे किशोरी का कलेजा दहल उठा, क्योंकि इस समय उसने पुनः अपने को उसी मकान में पाया जिसमें कुछ दिन पहले बेबसी की अवस्था में रह कर तरह-तरह की तकलीफें उठा चुकी थी और इसके साथ-ही-साथ उसको लाली और कुन्दन की बातें याद आ गई। केवल किशोरी ही को नहीं, बल्कि लाड़िली को भी वह जमाना याद आ गया क्योंकि यही लाड़िली लाली बन कर उन दिनों इस महल में रहती थी जिन दिनों किशोरी यहाँ मुसीबत के दिन काट रही थी। लाड़िली तो किशोरी को पहचानती थी,