मगर किशोरी को इस बात का गुमान न था कि वह लाली वास्तव में यही लाड़िली थी, जो आज हमारे महल में दाखिल है।
महल में पैर रखने के साथ ही किशोरी को वे पुरानी बातें याद आ गईं और इस सबब से उसके खूबसूरत चेहरे पर थोड़ी देर के लिए उदासी छा गई, साथ ही पुरानी बातें याद आ जाने के कारण लाड़िली की निगाह भी किशोरी के चेहरे पर जा पड़ी। वह उसकी अवस्था को देख कर समझ गई कि इस समय इसे पुरानी बातें भी याद आ गई हैं। उन्हीं बातों को खुद भी याद करके इस समय अपने को और किशोरी को मालिक की तरह या दूसरे ढंग से इस मकान में आए देख के और किशोरी के चेहरे पर ध्यान पड़ने से लाड़िली को हँसी आ गई। उसने चाहा कि हँसी रोके परन्तु रोक न सकी और खिलखिला कर हँस पड़ी जिससे किशोरी को कुछ ताज्जुब हुआ और उसने लाड़िली से पूछा-
किशोरी—क्यों, तुम्हें हँसी किस बात पर आई?
लाड़िली-यों ही हंसी आ गई।
किशोरी-ऐसा नहीं है, इसमें जरूर कोई भेद है, क्योंकि कई दिनों से हमारा तुम्हारा साथ है पर इस बीच में व्यर्थ हँसते हुए हमने तुम्हें कभी नहीं देखा। बताओ, सही बात क्या है?
लाड़िली-तुम्हें विचित्र ढंग से घबराकर चारों तरफ देखते हुए देखकर मुझे हंसी आ गई।
किशोरी–केवल यही बात नहीं है, जरूर कोई दूसरा सबब भी इसके साथ है।
कमलिनी-मैं समझ गई! बहिन, मुझसे पूछो, मैं बताऊंगी! बेशक लाड़िली के हँसने का दूसरा सबब है जिसे वह शर्म के मारे नहीं कहना चाहती।
किशोरी—(कमलिनी की कलाई पकड़कर) अच्छा बहिन, तुम ही बताओ कि इसका क्या सबब है?
कमलिनी-इसके हँसने का सबब यही है कि जिन दिनों तुम इस मकान में बेबसी और मुसीबत के दिन काट रही थीं, उन दिनों यह लाडिली भी यहाँ रहती थी और इससे-तुमसे बहुत मेल-मिलाप था।
किशोरी-(ताज्जुब से) तुम भी हँसी करती हो! क्या मैं ऐसी बेवकूफ हूँ जो महीनों तक इस महल में लाड़िली के ही साथ रही और फिर भी उसे पहचान न सकूं!
कमलिनी-(हँसकर) यह तो मैं नहीं कहती हूँ कि उन दिनों इस महल में लाड़िली अपनी असली सूरत में थी! मेरा मतलब लाली से है, वास्तव में यह लाड़िली उन दिनों लाली बनकर यहाँ रहती थी।
किशोरी—(ताज्जुब से घबराकर और लाड़िली को पकड़कर) हैं! क्या वास्तव में लाली तुम ही थी?
लाड़िली-इसके जवाब में 'हाँ' कहते मुझे शर्म मालूम होती है। अफसोस उन दिनों मेरी नीयत आज की तरह साफ न थी क्योंकि मैं दुष्टा मायारानी के आधीन थी। उसे मैं अपनी बड़ी बहिन समझती थी और उसी की आज्ञानुसार एक काम के लिए