सूरत उनकी आँखों के सामने दिखाई दे रही थी, तमाम बदन सनसना रहा था, सिर में चक्कर आ रहे थे, पैरों में इतनी कमजोरी आ गई थी कि खड़ा रहना मुश्किल हो गया था, यहाँ तक कि दोनों जमीन पर बैठ गये और अपनी बदकिस्मती का इन्तजार करने लगे।
जिन्न के चले जाने के बाद शेरअलीखाँँ ने मायारानी की तरफ देख के कहा―
शेरअलीखाँ―तूने तो केवल एक ही कलंक का टीका अपने माथे पर दिखाया था जिस पर मैंने इसलिये विशेष ध्यान नहीं दिया कि तू मेरे दोस्त की लड़की है, मगर अब तो एक ऐसी बात मालूम हुई है जिसने मुझे तड़पा दिया, मेरे कलेजे में दर्द पैदा कर दिया, रंजोगम का पहाड़ मेरे ऊपर डाल दिया। अफसोस, बलभद्रसिंह मेरा लँगोटिया दोस्त और लक्ष्मीदेवी मेरी मुँह बोली लड़की! हाँ राजा गोपालसिंह से मुझे कोई ऐसा सरोकार न था सिवाय इसके कि वह मेरे दोस्त का दामाद था। निःसन्देह यह सब काम इसी कम्बख्त दारोगा की मदद से किया गया होगा!
मुन्दर—(खड़ी होकर) बड़े अफसोस की बात है कि तुमने एक मामूली आदमी की झूठी बातों पर विश्वास करके मेरी तरफ कुछ भी ध्यान न दिया और न अपनी तथा उसकी बर्बादी का ही कुछ खयाल किया जिसके साथ तुमने कई काम करने के लिए कसमें खाई थीं।
शेरअली―खैर, मैं थोड़ी देर के लिए तेरी बात माने लेता हूँ कि वह एक झूठा और मामूली आदमी था, मगर इस बात का पता लगाना कौन कठिन है कि इस वक्त इस किले के अन्दर बलभद्रसिंह है या नहीं।
मुन्दर—उस बनावटी जिन्न ने तुम्हें धोखा दिया, जब उसने देखा कि वह अकेले हम लोगों को गिरफ्तार नहीं कर सकता तो यह चालबाजी खेली जिसमे तुम मेरे बाप बलभद्रसिंह का पता लगाने के लिए जिसे मरे हुए एक जमाना बीत गया है, इस किले वालों से मिलकर गिरफ्तार हो जाओ और अपने साथ हम लोगों को भी बरबाद करो। अगर तुमको उसकी सचाई पर ऐसा ही दृढ़ विश्वास है तो हम लोगों को इस किले के बाहर पहुँचा दो और तब जो जी में आवे सो करो।
शेरअली―जब मुझे उसकी बातों पर विश्वास ही है तो तुझे यहाँ से राजी-खुशी के साथ क्यों जाने दूँगा जिसने हजारों आदमियों को धोखे में डालकर बर्बाद किया और मुझे प्रतापी राजा वीरेन्द्रसिंह के साथ दुश्मनी करने के लिए तैयार किया?
मुन्दर―तुमने मुफ्त में मेरा साथ देना स्वीकार नहीं किया, तुमने मेरे बाप बलभद्रसिंह की दोस्ती का खयाल नहीं किया बल्कि तुमने उस दौलत की लालच में पड़ कर मेरा साथ दिया जिसने तुम्हें अमीर ही नहीं बल्कि जिन्दगी भर के लिए लापरवाह कर दिया―मेरे बाप बलभद्रसिंह के साथ तुमको मुहब्बत थी यह बात तो मैं तब समझूँ जब सब मेरी दौलत मुझे वापस कर दो। यह भला कौन भलमनसी की बात है कि मेरी कुल जमा-पूँजी लेकर मुझे कंगाल बना दो और अन्त में यों धोखा देकर बर्बाद करो!
शेरअली―(हँसकर) यह किसी बड़े भारी बेवकूफ का काम है कि अपने घर में आई दौलत को फिर निकाल बाहर करे तिस पर भी ऐसे नालायक की दौलत जिसने एक नहीं बल्कि सैकड़ों खून किये हों!