प्रकट करके कहा कि मायारानी तथा दारोगा का मुकदमा भूतनाथ के बाद सुना जायेगा।
राजा वीरेन्द्रसिंह ने तेजसिंह से यह भी कह दिया कि भूतनाथ का मुकदमा महल के अन्दर सुना जायेगा और उस समय हमारे ऐयारों के सिवाय यहाँ किसी गैर के रहने की जरूरत नहीं है। औरतों में भी सिवाय लड़कियों के जो चिक के अन्दर बैठाई जायेंगी, कोई लौंडी इतना नजदीक न रहने पावे कि हम लोगों की बातें सुने, और बल- भद्रसिंह की गद्दी हमारे पास ही बिछाई जाये।
हमारे पाठक सवाल कर सकते हैं कि जब मुकदमा सुनने के समय ऐयारों के सिवाय किसी गैर आदमी के मौजूद रहने की मनाही कर दी गई तो किशोरी, कमलिनी और लक्ष्मीदेवी इत्यादि को पर्दे के अन्दर बैठाने की क्या जरूरत थी? इसका जवाब यह हो सकता है कि ताज्जुब नहीं, राजा वीरेन्द्रसिंह ने सोचा हो कि जिस समय भूतनाथ का मुकदमा सुना जायेगा और उसके ऐबों को पोटलियाँ खोलने के साथ-साथ सबूत की चिट्ठियाँ अर्थात् वह जन्मपत्री पढ़ी जायेगी, जो बलभद्रसिंह ने दी है तो वेशक लड़कियों के दिल पर चोट बैठेगी और उनके चेहरे तथा अंगों से उनकी अवस्था अवश्य प्रकट होगी कौन ठिकाना कोई चीख उठे, कोई बदहवास हो के गिर पड़े, या किसी से किसी तरह की वेअदबी हो जाये, तो यह अच्छी बात न होगी। बड़ों के सामने अनुचित काम बेबसी की अवस्था में हो जाने से दिल को रंज पहुँचेगा और यदि ऐसा न भी हुआ तो भी दिल की अवस्था छिपाने के लिए उन्हें बहुत उद्योग करना पड़ेगा तथा उनके नाजुक कलेजे को तकलीफ पहुँचेगी, जिससे वह लज्जित होगी। इससे इन लोगों का परदे के अन्दर ही बैठना उचित होगा। बेशक यही बात है और बड़ों को ऐसा खयाल होना ही चाहिए!
रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। महल के एक छोटे से मगर दोहरे दालान में रोशनी अच्छी तरह हो रही है। दालान के पहले हिस्से में बारीक चिक का परदा गिरा हुआ है और भीतर पूरा अंधकार है। किशोरी, कामिनी, लक्ष्मीदेवी, कमलिनी, लाड़िली और कमला उसी के अन्दर बैठी हुई हैं। वाहरी हिस्से में जिसमें रोशनी बखूबी हो रही है, राजा वीरेन्द्रसिंह की गद्दी लगी हुई है, उनके बगल में बलभद्रसिंह बैठे हुए हैं, दूसरी बगल में कागजों की गठरी लिए हुए तेजसिंह विराजमान हैं, और बाकी के ऐयार लोग (भैरोंसिंह को छोड़ के) दोनों तरफ दिखाई दे रहे हैं तथा सभी की निगाहें सामने के मैदान पर पड़ रही हैं जिधर से हथकड़ी-वेड़ी से मजबूर भूतनाथ को लिए हुए देवीसिंह चले आ रहे हैं। भूतनाथ ने आने के साथ ही झुक कर राजा वीरेन्द्रसिंह को सलाम किया और कहा।
भूतनाथ―व्यर्थ ही बात का बतंगड़ बनाकर मुझे साँसत में डाल रखा गया है, मगर भूतनाथ ने भी जिसने आप लोगों को खुश रखने के लिए कोई बात उठा नहीं रखी इस बात का प्रण कर लिया था कि जब तक राजा वीरेन्द्रसिंह का सामना न होगा, अपने मुकदमे की उलझन को खुलने न देगा।
वीरेन्द्रसिंह―बेशक इस बात का मुझे भी बहुत रंज है कि उस के ऊपर एक भारी जुर्म ठहर गया है, जिसकी कार्रवाइयों को सुन-सुनकर हम खुश होते थे और जिसे मुहब्बत की निगाह से देखने की अभिलाषा रखते थे।