पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/७६

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बल्कि अपने धोखे का परिचय देकर फिर उसके सामने उसी सूरत में आवें जिस सूरत में उन्होंने धोखा दिया था, और वास्तव में बात भी ऐसी ही है। यह तेजसिंह नहीं थे, बल्कि मायारानी के असली दारोगा साहब थे। मगर अफसोस, इस समय उनकी दाढ़ी नोंचने तथा नाक काटने के लिए वही तैयार हैं जिनके वे पक्षपाती हैं।

नागर ने जो कुछ कहा मायारानी ने स्वीकार किया। नागर ने पहले तिलिस्मी खंजर से दारोगा साहब की नाक काट ली और फिर दाढ़ी नोंचने के लिए तैयार हुई। मगर यह दाढ़ी नकली नहीं थी जो एक ही झटके में अलग हो जाती, इसलिए इसके नोंचने में बेचारी नागर को विशेष तकलीफ उठानी पड़ी। नागर दाढ़ी नोंचती जाती थी और यह कहती जाती थी-"तेज सिंह बड़े मजबूत मसाले से बाल जमाता है!"

आधी दाढ़ी नुचते-नुचते दारोगा का चेहरा खून से लालोलाल हो गया। उस समय मायारानी ने चौंक कर नागर से कहा, "ठहर-ठहर, बेशक धोखा हुआ, यह तेजसिंह नहीं, वास्तव में बेचारा दारोगा है।"

नागर-(रुककर) हाँ, ठीक तो जान पड़ता है। हाय, बहुत बुरी भूल हो गई।

मायारानी-भूल क्या, गजब हो गया! इस बेचारे ने तो सिवाय नेकी के मेरे साथ बुराई कभी नहीं की, अब यह जहर के मारे मरा जा रहा है, पहले जहर दूर करने की फिक्र करनी चाहिए।

नागर–जहर तो बात-की-बात में दूर हो जायगा मगर अब हम लोग इसे अपना मुंह कैसे दिखाएंगे!

मायारानी—मैंने तो केवल दाढ़ी नोंचने की राय दी थी, तू ही ने नाक काटने के लिए कहा और अपने हाथ से बेचारे की नाक काट भी ली।

नागर--क्या खूब? इसे गालियाँ भी मैंने ही दी थीं। क्या तुम्हारी आज्ञा के बिना मैंने इनकी नाक काट ली? अब कसूर मेरे सिर पर थोप आप अलग होना चाहती हो? तुम्हें लोग सच ही बदनाम करते हैं। तुम्हारी दोस्ती पर भरोसा करना बेशक मुर्खता है, जब मेरे सामने तुम्हारा यह हाल है तो पीछे न मालूम तुम क्या करतीं! खैर, क्या हर्ज है, जैसी खुदगर्ज हो मैं जान गई।

इतना कह कर नागर वहाँ से गई और जहर दूर करने वाली दवा की शीशी ले आई। थोड़ी-सी दवा उस जगह लगाई जहाँ अँगूठी के सबब से छिल गया था। दवा लगाने के थोड़ी देर बाद उस जगह छाला पड़ गया और उस छाले को नागर ने फोड़ दिया। पानी निकल जाने के साथ ही दारोगा होश में आकर उठ बैठा और अपनी हालत देखकर अफसोस करने लगा। यद्यपि वह कुछ भी नहीं जानता था कि मायारानी ने उसके साथ ऐसा सलूक क्यों किया तथापि उसे इतना क्रोध चढ़ा हुआ था कि मायारानी से कुछ भी न पूछकर वह चुपचाप उसका मुँह देखता रहा।

मायारानी-(दारोगा से) माफ कीजियेगा, मैंने केवल यह जानने के लिए आपको बेहोश किया था कि यह वीरेन्द्रसिंह का कोई ऐयार तो नहीं है, इसके सिवाय और जो कुछ किया नागर ने किया।

नागर-ठीक है, बाबाजी इस बात को बखूबी समझते हैं। मैंने ही तो जहरीली