पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 3.djvu/७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
76
 


अँगूठी से इनकी जान लेने का इरादा किया था! (बाबाजी की तरफ देखकर) मायारानी की दोस्ती पर भरोसा करना बड़ी भारी भूल है। जब इसने अपने पति ही को कैद करके वर्षों तक दु:ख दिया तो हमारी आपकी क्या बात है। इसने लक्ष्मीदेवी वाला भेद भी तेजसिंह से कह दिया और साथ ही इसके यह भी कह दिया कि सब काम दारोगा साहब ने किया है।

मायारानी—(क्रोध से नागर की तरफ देखकर)क्यों री, तू मुझे नाहक बदनाम करती है!

नागर-जब तुम झूठमूठ मुझे बदनाम करती हो और बाबाजी की नाक काटने का कसूर मुझ पर थोपती हो तो क्या मैं सच्ची बात कहने से भी गई! आँखें क्या दिखाती हो? मैं तुमसे डरने वाली नहीं हूँ और तुम मेरा कुछ कर भी नहीं सकती हो। पहले तुम अपनी जान तो बचा लो!

मायारानी, जिसने इसके पहले कभी आधी बात भी किसी की नहीं सुनी थी, आज नागर की इतनी बड़ी बात कब बर्दाश्त कर सकती थी? उसने दाँत पीसकर नागर की तरफ देखा। इस बीच में बाबाजी भी बोल उठे, "बेशक सब कसूर मायारानी का है, नागर की जुबान से लक्ष्मीदेवी का शब्द निकलना ही इसका पूरा-पूरा सबूत है।"

बाबाजी की बात सुनकर मायारानी का गुस्सा और भी भड़क उठा। वह तिलिस्मी खंजर हाथ में लेकर नागर पर झपटी। नागर ने बगल में होकर अपने को बचा लिया और आप भी तिलिस्मी खंजर हाथ में लेकर मायारानी पर वार किया। दोनों में लड़ाई होने लगी। वे दोनों कोई फेकैत या उस्ताद तो थी ही नहीं कि गुंथ जाती या हिकमत के साथ लड़ती। हाँ, दाँव-घात बेशक होने लगे। कायदे की बात है कि तलवार या खंजर जो भी हाथ में हो, लड़ते समय उसका कब्जा जोर से दबाना ही पड़ता है। दबाने के सबब दोनों खंजरों में से बिजली की सी चमक पैदा हुई और इस सबब से बेचारे बाबाजी ने घबराकर अपनी आँखें बन्द कर लीं, बल्कि भागने का बन्दोबस्त करने लगे। वह लौंडी, जो तेजसिंह की चिट्ठी लाई थी, चिल्लाती हुई बाहर चली गई और उसने सब लौंडियों को इस लड़ाई की खबर कर दी। बात की बात में सब लौडियां वहाँ पहुँची और लड़ाई बन्द कराने का उद्योग करने लगीं।

जब आदमी के पास दौलत होती है या जब आदमी अपने दर्जे या ओहदे पर कायम रहता है, तब तो सभी कोई उसकी इज्जत करते हैं, मगर रुपया निकल जाने या दर्जा टूट जाने पर फिर कोई भी नहीं पूछता, संगी-साथी सब दुम दबाकर भाग जाते हैं, भले आदमी उससे बात करना अपनी बेइज्जती समझते हैं, चाचा कहने वाले भतीजा कह के भी पुकारना पसन्द नहीं करते, दोस्त साहब-सलामत तक छोड़ देते हैं, बल्कि दुश्मनी करने पर उतारू हो जाते हैं, और नौकर-चाकर केवल सामना ही नहीं करते बल्कि खुद मालिक की तरफ आँखें दिखाते हैं।

ठीक यही हालत इस समय मायारानी की है। जब वह रानी थी, सौ ऐब होने पर भी लोग उसकी कदर करते थे, उससे डरते थे, और उसका हुक्म मानना, चाहे कैसे ही बुरे काम के लिए वह क्यों न कहे, अपना फर्ज समझते थे। आज वह रानी की पदवी