इस समय चन्द्रदेव पूरी तरह से निकल कर अपनी सुफेद चाँदनी चारों तरफ फैला रहे थे। नागर के सिपाहियों को जब मालूम हुआ कि नागर गिरफ्तार कर ली गई तो उनकी ताकत और भी जाती रही। दो सिपाही तो जख्मी होकर जमीन पर गिर पड़े और बाकी छह अपनी जान लेकर भागे। उस समय श्यामलाल भी आकर उन आठों बहादुरों के पास खड़ा हो गया और उन लोगों की तरफ देख के बोला, "शाबाश, तुम लोगों ने अपना काम बड़ी खूबी के साथ पूरा किया, मैं बहुत खुश हूँ, अब बताओ, मेरे लिए घोड़ा कहाँ है?"
श्यामलाल को देखते ही उन लोगों ने हाथ जोड़ कर सिर झुकाया और एक यह कह कर उत्तर की तरफ बढ़ा कि 'ठहरिये, मैं घोड़ा लेकर अभी आता हूँ।' थोड़ी देर तक सन्नाटा रहा और जब वह आदमी घोड़ा लेकर आ गया तो श्यामलाल घोड़े पर सवार हो गया तथा उन आठों से बोला, "अच्छा अब तुम लोग रमापुर जाओ, मैं अपना काम करके तुमसे मिलूँगा।"
श्यामलाल भी उत्तर की तरफ रवाना हुआ और पुल के पार होकर उसने अपने घोड़े को तेज किया। जब लगभग एक कोस के गया तो देखा कि वे दोनों सवार, जो नागर को उठा लाये थे, सड़क पर खड़े हैं। उन लोगों को देखकर श्यामलाल ने कहा, "शाबाश मेरे दोस्तो, तुम लोगों की जितनी तारीफ की जाय थोड़ी है। अच्छा, अब यहाँ ठहरने का मौका नहीं है, चले चलो।"
अब हम अपने पाठकों को उस तिलिस्मी मकान की तरफ ले चलते हैं जो कमलिनी के अधिकार में है अर्थात् वह तालाब के बीचोंबीच वाला मकान जिसमें कुछ दिन तक कुँअर इन्द्रजीतसिंह को कमलिनी के बस में रहना पड़ा था।
आजकल इस मकान में कमलिनी की प्यारी सखी तारा रहती है। नौकर, मजदर प्यादे, सिपाही सब उसी के अधीन हैं क्योंकि वे लोग इस बात को बखूबी जानते हैं कि कमलिनी तारा को अपनी सगी बहिन से बढ़ कर मानती है और तारा के कहे को टालना कदापि पसन्द नहीं करती। कमलिनी के कहे अनुसार तारा कुछ दिनों तक कमलिनी ही की सुरत बनाकर उस मकान में रही और इस बीच में वहाँ के नौकर-चाकरों को इसका गुमान भी न हुआ कि कमलिनी कहीं बाहर गई और यह तारा है, बल्कि उन लोगों को यही विश्वास था कि तारा को कमलिनी ने किसी काम के लिए भेजा है, मगर उस दिन से जब से कमलिनी ने मनोरमा को गिरफ्तार किया था और अपने तिलिस्मी मकान में भिजवा दिया था, तारा अपनी असली सूरत में ही रहती है और समय-समय पर कमलिनी के हाल-चाल की खबर भी उसे मिला करती है।
देवीसिंह और भूतनाथ को साथ लिए हुए राजा गोपालसिंह ने जब किशोरी